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Saturday, February 8, 2014

nayi dilli-purani dilli

दोस्तों आज एक रचना लिख रहा हूँ जिसका आधार आदरणीय राजमणि राय जी की ग़ज़ल “ दर्द की ग़ज़ल दिल्ली  पुरानी है “ पर केंद्रित है।  राजमणि जी बिहार के महनार में रहते हैं।  वहीँ मुझे उनकी ग़ज़ल सुनने  का अवसर मिला था। …  इसमे अभी और सुधार करूंगा।  



नयी दिल्ली सुखों का दरिया गहरा, दुःख का सैलाब दिल्ली पुरानी है,
इतिहास के पन्नों को पलटा, बार-बार उजड़ती देखी दिल्ली पुरानी है।

नयी दिल्ली अंग्रेजों का आशियाँ, भारतीयों की पहचान दिल्ली पुरानी है,
फाँसी का फंदा हंस-हंस कर चूमा, आज़ादी की दास्ताँ दिल्ली पुरानी है।

वही पुरानी दिल्ली उपेक्षित आज भी सुविधाओं से, सत्ता की बेईमानी है,
सत्ता के दलालों का घर नयी दिल्ली, देश भक्तों की हवेली दिल्ली पुरानी है,


जानते नहीं मेहमाननवाज़ी नयी दिल्ली में, औपचारिकता का परिवेश,
रिश्ते निभाना, आवभगत करना, सचमुच पुरानी दिल्ली खानदानी है।

नहीं बचे शहर के बीच बाग़-बगीचे औ ‘ दरिया, नवाबों के दौर के,
इंसानियत की आबो-हवा मगर, आज भी वहाँ बहती सुहानी है।

नशा,शराब, सिगरेट, तम्बाकू व ब्यूटी पार्लर, नयी दिल्ली की शान,
पानदानी, खानदानी औ सुरमा सुलेमानी, पुरानी दिल्ली की निशानी है।

अंकल, आंटी, सर और मैडम,अंग्रेजी के अनुयायी,  नयी दिल्ली में बस गये,
बहन-भैया, दादा-दादी, नाना-नानी, अम्मी-अब्बा, पहचान दिल्ली  पुरानी है।

डॉ अ कीर्तिवर्धन

2 comments:


  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन अलविदा मारुति - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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