Pages

Followers

Thursday, February 13, 2014

samikshaa-- tyaag purohit kaa , kavi anil sharma vats ,bhiwani

                                                                               समीक्षा-”त्याग पुरोहित का “

भावनाओं का सागर--------

नहीं जानता गीत किसे कहते हैं,
छंदों की हो रीत, मीत किसे कहते हैं
क्या छंद बिना कोई भावों नहीं कह पायेगा
दृष्टिहीन ! नागरिक का अधिकार नहीं पायेगा ?

मेरा मानना है कि भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए किसी कविता, गीत, कहानी की आवश्यकता नहीं होती,यह तो आपके व्यवहार, जीवन शैली व आंसुओं  से भी कही जा सकती है।

आंसू नहीं छंद होते हैं, आंसू नहीं नियम होते हैं,
भावों की अनुभूति हैं आंसू, कभी ख़ुशी कभी गम होते हैं।

अगर  भावानुभूति शब्दों में ढलकर कविता का रूप ले ले तब तो सोने पे सुहागा। सुन्दर भावनाओं को कविता में ढालने का काम किया है श्री अनिल शर्मा वत्स ने अपने प्रथम काव्य संग्रह “ त्याग पुरोहित का” के माध्यम से।

गीत वही अच्छा जो भावों को दर्शाता हो,
पाठक भी जिसमे पूरा रम जाता हो।
गीतों का सार जुड़ा हो तन-मन से,
भावों के तार जुड़ें हो जन-जन से।

आज जब “त्याग पुरोहित का” की प्रति भाई आनंद प्रकाश “आर्टिस्ट” के सौजन्य से प्राप्त हुई,उसे पढ़ा तो मुझे अपनी पूर्व रचित रचना की उपरोक्त पंक्तियाँ याद आ गयी। अनिल जी के इस काव्य संग्रह में कुल 57 कवितायें हैं। अधिकतर रचनाओं के केंद्र में सीधे या परोक्ष नैतिकता का जागरण तथा समाज को दिशा देने की ललक है। बचपन में नैतिक शिक्षा को लेकर, बच्चों के बौद्धिक विकास को ध्यान में रखकर बीरबल, तेनाली राम व शास्त्रों से प्रेरणा दायक कहानियों को पढने का  अवसर मिलता था। आज “ त्याग पुरोहित का” पढ़कर उसी प्रकार की कहानियों का स्मरण हो आया। यह संग्रह कुछ मायनों में उन्ही कहानियों का मौलिक काव्य रूप है। जो कि एक सकारात्मक प्रयास है।  सरल भाषा और गेयता के कारण संग्रह की सारी कवितायें प्रशसनीय हैं। ‘लालच,सेतु निर्माण,तथा त्याग पुरोहित का ‘ ऐसी ही नैतिक,ऎतिहासिक कहानियों के प्रतिबिम्ब हैं। वत्स जी समाज के चेतनशील प्राणी हैं। समाज में व्याप्त बुराइयों को मिटाने के प्रति सजग रहते हैं।  तभी तो समाज में बढ़ते नशा-शराब के चलन के प्रति उनकी लेखनी ज्यादा ही मचलती है और इसके विनाशकारी प्रभाव के प्रति सचेत भी कराती है -

सेहत से अपनी ही तुम,  करते खिलवाड़ सभी हो,
और साथ-साथ ही इससे, खोते विशवास सभी हो।

सिगरेट,प्रण शराब छोड़ने का,टेलीफोन शराबी का, धूम्रपान जरुरी है, शराब छुड़ाएं आदि रचनाएं इसी विषय पर सचेत करती हैं। दरअसल हमारे देश में शराब व नशे का चलन दिनोदिन बढता जा रहा है, जिसके परिणाम स्वरुप संस्कार प्रभावित हो रहे हैं। पुरानी कहावत है --
बाप शराब पियेंगे, बच्चे भूखे मरेंगे।

हरियाणा कृषि प्रधान प्रदेश है। वहाँ की पढ़ी-लिखी बेटियां भी खेती के काम में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती हैं। उसी बात को संस्कार कविता में माँ-बाप की अपनी बेटी को सीख दृष्टव्य है----

ऐसा ना हो परिवार कहीं, कटाई का पूरा काम करे,
बताकर पढ़ी-लिखी अपने को, सारा दिन आराम करे।

विगत दिनों बेटी के लिए एक रचना लिख रहा था तो मैंने भी कुछ यूँ कहा था-

पढने लिखने का मतलब समझ,
ज्ञान का दीप समाज में जलाना है।
अपने हुनर,संस्कार व शिक्षा से ,
दोनों घरों का मान तुझे बढ़ाना है।

आज अनिल जी की संस्कार रचना पढ़कर मन प्रफुल्लित हो गया।  जब तक माँ-बाप अपने बच्चों को संस्कारों की शिक्षा देते रहेंगे, भारत विश्व का सिरमौर बना रहेगा। शर्मा जी की जन्म व कर्म भूमि हरियाणा ही है।  हरियाणा खेती के साथ साथ सीमा पर भी बहुतायत में सैनिक भेजता है यानि हरियाणा सैनिकों की भी भूमि है। तब ऐसा कैसे हो सकता है कि एक राष्ट्र भक्त सैनिकों को नमन ना करे ---

समर्पित हुये  जो देश की खातिर, सर्वस्व अपना छोड़,
होने न्योछावर अपने वतन पर, देखी लगी यहाँ होड़।
कितने गिनाऊँ शहादत वीरों की, जिसने दिया बलिदान,
हुआ नाम उनका दुनिया में देखो, कोई नहीं अनजान।

अनुज अनिल जी सिंचाई विभाग में कार्यरत हैं। गावँ की पृष्ठ भूमि, खेलकूद, बागवानी के शौक़ीन तथा समाज सेवा को समर्पित युवा हैं।  इस संग्रह मे उन्होंने लगभग सभी विषयों को छूने का प्रयास किया है। जिससे उनके मानसिक कैनवास के विस्तृत आकार का सहज आभास मिलता है।  आदर्श पति-पत्नी,के दायित्व, नारी, वृद्धाश्रम ,शिक्षा का महत्त्व, पूजा, धर्म यानि सब रंगों का समावेश किया है वत्स जी ने अपनी लेखनी से अपने कैनवास पर।  और उकेरें हैं अनेक विम्ब हास्य- व्यंग ,बलिदान, प्रेरणा ,समर्पण,दायित्व एवं समाज सुधार के। संक्षेप में कहूं तो संग्रह की सारी कवितायें किसी न किसी बहाने समाज से बुराई मिटाने का सन्देश देती हैं।
भाई आनंद प्रकाश जी ने पुस्तक के प्रारम्भ में प्राकथान में कितना सही कहा है “ अनिल शर्मा वत्स का अपनी बात कहने का यह प्रयास काफी महत्त्व रखता है “ दरअसल महत्वपूर्ण है अपनी बात का ,कहना  विचार तो सबके ही पास हैं मगर कुछ बिरले ही अपने विचारों को मूर्त रूप दे पाते हैं। मैंने पूर्व में भी कहा है कि विचारों की अभिव्यक्ति के लिए नियम छंद महत्वपूर्ण नहीं हैं-

छंदयुक्त कविता साहित्य का गहना है
बिना छंद कविता, निर्धनता में सहोदर बहना है।
दोनों की ही रगों में बहता साहित्य का खून है ,
संस्कार युक्त बन सबके दिल में रहना है।
निर्धन ही संस्कारों के पोषण वाला है,
निर्धन ही सभ्यता-संस्कृति का रखवाला है।

सभी सन्दर्भों में अनिल की कवितायें माँ की उस लॉरी के सामान हैं जो अपने बच्चे को बहलाने के लिए सरल ह्रदय से गुनगुनाती है, अपने चहरे के हाव-भाव से बहलाती है,कभी रोने का बहाना,कभी खिलखिलाती है,और अन्तत : बच्चे को मनाकर अच्छा नागरिक बनाने की दिशा में सदा अग्रसर रहती है।

भाई अनिल शर्मा वत्स को उनकी प्रथम कृति के लिए हार्दिक बधाई। उनकी लेखनी निरंतर निरंतर चलती रहे, नित नए सन्दर्भ गढ़ती रहे।

शुभकामनाएं

समीक्षक-


डॉ अ कीर्तिवर्धन
विद्यालक्ष्मी निकेतन
53 - महालक्ष्मी एन्क्लेव
मुज़फ्फरनगर-251001 (उत्तरप्रदेश)


पुस्तक-त्याग पुरोहित का
कवि -अनिल शर्मा वत्स
गली न० -13, शान्ति नगर, कोंट रोड
भिवानी -127021 (हरियाणा )
मूल्य -200/-

प्रकाशक-आनंद कला मंच एवं शोध संस्थान भिवानी की पुस्तक प्रकाशन योजना के अंतर्गत , सुकीर्ति प्रकाशन, कैथल  द्वारा प्रकाशित।   



No comments:

Post a Comment