Pages

Followers

Saturday, March 29, 2014

raghunandan sharmaa ki sahityak yaatra -samikshaa

“सघन अनुभवों के पुंज शब्द जब तब मेरे संज्ञान में मचलते, दौड़ते,भागते तो उन्हें लिपिबद्ध करने को मेरा जी मचल उठता।  लपक-लपक कर उन्हें सहेजता।  साहित्य की नाना विधाओं में उन्हें पिरोता। वे कभी लेख बन जाते, कभी कविता, कहानी,एकांकी, रिपोर्ताज़, रेखाचित्र, संस्मरण, उपन्यास भी। “ (रघुनन्दन शर्मा )

वरिष्ठ साहित्य्कार श्री रघुनन्दन शर्मा जी की साहित्य साधना एवं यात्रा में उपरोक्त कथन उनकी सरलता, सहजता एवं साहित्य सृजन के लिए ईमानदार प्रयासों का द्योतक है।
“मूर्धन्य साहित्यकार रघुनन्दन शर्मा की साहित्यिक यात्रा “ को पढने का अवसर मिला।  वैसे तो मैं श्री शर्मा जी से विगत अनेक वर्षों से परिचित हूँ और उनका आशीर्वाद भी मुझे मिलता रहा है।  मुझ पर केंद्रित “कल्पांत” के विशेषांक में मेरी पुस्तक “जतन से ओढ़ी चदरिया ‘ की उनके द्वारा की गयी समीक्षा मार्गदर्शक है। शर्मा जी द्वारा भेंट किये गए “कजरारी” पत्रिका के दो पुराने अंक आज भी मेरे पास सुरक्षित हैं। जिसमे उनके सम्पादकीय कौशल का आभास मिलता है। वर्त्तमान पुस्तक का शीर्षक श्री रघुनन्दन शर्मा जी की साहित्यिक यात्रा को दर्शाने का सार्थक प्रयास है।
जिंदगी का मतलब ही है खट्टे-मीठे अनुभवों से गुजरना, सुख-दुःख के ताने-बाने की झीनी चदरिया में अपने स्व को छुपाकर आगे बढ़ाना।  नकारात्मक चिंतन हमें व्यथित करता है और सकारात्मक आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।  कभी कभी भावावेश में हम अतीत के पैन खोलकर उन लोगों को चर्चा में ला देते हैं जिनका स्वयं का कोई अस्तित्व नहीं होता।  श्री रघुनन्दन शर्मा जी ने यहाँ उन लोगों को अधिक महत्त्व दे दिया जिन्होंने सदैव उनको ठगा, मार्ग में कांटे बिछाये व अवरोध उत्तपन्न किये। मेरी दृष्टि से इस नकारात्मक प्रसंग को यदि आभार में प्रकट किया जाता कि इन लोगों ने मेरी जीवन यात्रा में ऐसे-ऐसे अवरोध उत्तपन्न किये जिनके कारण मैं निरंतर नए मार्ग खोजकर आगे बढता रहा, उन सबके प्रति आभार प्रकट करता हूँ तो शायद इस कथ्य का यह सकारात्मक दृष्टिकोण बन जाता।
रघुनन्दन शर्मा जी शब्दों के कुशल शिल्पी हैं। अलंकार युक्त भाषा पर उनका आधिपत्य है। उपमाओं के माध्यम से कथ्य को रोचक बनाने में उन्हें महारत हासिल है
“और खुद के भोलेपन में रहते न जाने जवानी कब चली गयी, मुंडेर पर रही धुप की तरह सरक गयी और अधेड़पन तथा जिम्मेदारियों ने सिर उठाना शुरू कर दिया। “ ( इसी पुस्तक से)

सकारात्मक सोच का यह परिणाम है,
मुश्किलों से जीत जाना मेरा काम है।
डरता नहीं राह की रुकावटों से मैं कभी,
आँधियों में दीया जलाना मेरा काम है।

जब जब  मैं अपनी उपरोक्त पंक्तियों को पढ़ता हूँ तो एक नए उत्साह का अनुभव करता हूँ। जब बात सकारात्मक चिंतन की आती है तो मैंने देखा कि शर्मा जी का जीवन अनेक कठिनाइयों से भरपूर रहा। इन कठिनाइयों से जूझते हुए भी निरंतर लेखा, सामाजिक दायित्वों का निर्वाह तथा भ्रमण उन्हें भीड़ से अलग रेखांकित करता है। शर्मा जी ने अपने  लेखन की वजह बताते हुए स्पष्ट किया है -”अनेक अबूझ व्यंग्यों का मुकाबला करते रहकर, कभी इस भभकते एकांत को भोगना पडेगा, विकल्प में साहित्य रचना में प्रवृत होना, मोटे-मोटे भारी रिश्तों का निर्वहन करना होगा -अब कुछ भी लिखे बिना रह नहीं सकता। “ (इसी पुस्तक से )
बस यही सकारात्मकता शर्मा जी की साहित्य साधना की प्रेरणा बन गयी।
शर्मा जी के दो उपन्यास “देश के लिए” तथा “अधूरे सात फेरे” मुझे भी पढने का अवसर मिला था और मैंने अपनी समीक्षा भी प्रेषित की थी। अनेकोनेक पात्र-पत्रिकाओं  में निरंतर प्रकाशित उनके समसामायिक लेख सदा चर्चित रहते हैं। चार काव्य संग्रह, तीन कहानी संग्रह, समीक्षाएँ, कजरारी का सम्पादन और भी जाने क्या-क्या लिखकर श्री रघुनन्दन शर्मा जी ने समाज को अनूठा साहित्य संसार दिया है।  शर्मा जी की साहित्य यात्रा का दायरा बहुत विशाल है। वह निर्भीक, स्पष्टवादी लेखक हैं
“कैसे रिझाऊं तुम्हे” पुस्तक में भ्रष्ट, बेईमान व पाखंडी संतों पर तीखे कटाक्ष उनके जैसा व्यक्ति ही कर सकता है। अनेकों सम्मानों से अलंकृत शर्मा जी ने हास्य-व्यंग, फेंटसी, एवं एकांकियों पर भी अपनी लेखनी चलायी है।  आपके यात्रा संस्मरण रोचकता लिए होते हैं। कहानीकार के रूप में “ कामनाओं के चक्रव्यूह”आपकी बहुचर्चित व लोकप्रिय कृति रही है।
मैं डॉ राकेश कुमार सिंह जिन्होंने अथक परिश्रम से “मूर्धन्य साहित्य्कार रघुनन्दन शर्मा की साहित्यक यात्रा” का सम्पादन किया तथा उनके सम्पादकीय सहयोगी श्री किशन लाल शर्मा व श्री कमलेश पाण्डेय ‘पुष्प’ को साधुवाद देना चाहता हूँ कि शर्मा जी की साहित्यक यात्रा के विभिन्न सोपानों को एक ही स्थान पर संजोने का दुरूह कार्य किया है। यधपि साहित्यक यात्रा को संजोने के इस क्रम में जीवन यात्रा के प्रसंगों का समावेश अधिक हो गया है जिसके फलस्वरूप यह पुस्तक शर्मा जी की “जीवन यात्रा में साहित्यक पड़ाव” प्रतीत हो रही है, तथापि यह प्रयास भी अनूठा ही रहा जिसके कारण श्री रघुनन्दन शर्मा जी के द्वारा खींचे गए गाँव, परिवार की पृष्ठभूमि के शाब्दिक चित्रों से साक्षात्कार का अनुभव मिला, समाज में स्वार्थी लोगों के विभिन्न रूपों का दर्शन हुआ तथा शर्मा जी की पारिवारिक , आर्थि, सामाजिक स्थिति व कठिनाइयों से लड़ने ,संघर्ष करने के उनके जज्बे को समझने का भी अवसर मिला।
कुल मिलाकर कहा जाए तो सम्पादक त्रय ने बहुत मेहनत से शर्मा जी को सम्पूर्णता से तलाशने का सार्थक प्रयास किया है। आकर्षक व्यक्तित्व वाले आवरण युक्त, साफ़ स्पष्ट,त्रुटि रहित मुद्रण, जिसके लिए श्री नरेंद्र जी (पारुल प्रकाशन ) ने अथाह मेहनत की है, उन्हें भी बहुत बहुत साधुवाद।  
प्रभु से कामना कि श्री रघुनन्दन शर्मा जी निरंतर स्वस्थ रहते हुए नित नया सृजन करते रहें और अपनी रचनाओं से समाज का मार्ग दर्शन करते रहें।

शुभकामनाएं।




समीक्षक
डॉ अ कीर्तिवर्धन
विद्यालक्ष्मी निकेतन, 53-महालक्ष्मी एन्क्लेव, मुज़फ्फरनगर-251001 (उत्तर प्रदेश)
08265821800

पुस्तक-
मूर्धन्य साहित्यकार रघुनन्दन शर्मा की साहित्यक यात्रा
सम्पादक-डॉ राकेश कुमार सिंह व अन्य
प्रकाशक- पारुल प्रकाशन , दिल्ली-110059
पृष्ठ 127 ,  मूल्य-250 /-

श्री रघुनन्दन शर्मा
ए-2/10 ए , केशव पुरम, दिल्ली -110035
09899570393

1 comment:

  1. ***आपने लिखा***मैंने पढ़ा***इसे सभी पढ़ें***इस लिये आप की ये रचना दिनांक 31/03/2014 यानी आने वाले इस सौमवार को को नयी पुरानी हलचल पर कुछ पंखतियों के साथ लिंक की जा रही है...आप भी आना औरों को भी बतलाना हलचल में सभी का स्वागत है।


    एक मंच[mailing list] के बारे में---


    एक मंच हिंदी भाषी तथा हिंदी से प्यार करने वाले सभी लोगों की ज़रूरतों पूरा करने के लिये हिंदी भाषा , साहित्य, चर्चा तथा काव्य आदी को समर्पित एक संयुक्त मंच है
    इस मंच का आरंभ निश्चित रूप से व्यवस्थित और ईमानदारी पूर्वक किया गया है
    उद्देश्य:
    सभी हिंदी प्रेमियों को एकमंच पर लाना।
    वेब जगत में हिंदी भाषा, हिंदी साहित्य को सशक्त करना
    भारत व विश्व में हिंदी से सम्बन्धी गतिविधियों पर नज़र रखना और पाठकों को उनसे अवगत करते रहना.
    हिंदी व देवनागरी के क्षेत्र में होने वाली खोज, अनुसन्धान इत्यादि के बारे मेंहिंदी प्रेमियों को अवगत करना.
    हिंदी साहितिक सामग्री का आदान प्रदान करना।
    अतः हम कह सकते हैं कि एकमंच बनाने का मुख्य उदेश्य हिंदी के साहित्यकारों व हिंदी से प्रेम करने वालों को एक ऐसा मंच प्रदान करना है जहां उनकी लगभग सभी आवश्यक्ताएं पूरी हो सकें।
    एकमंच हम सब हिंदी प्रेमियों का साझा मंच है। आप को केवल इस समुह कीअपनी किसी भी ईमेल द्वारा सदस्यता लेनी है। उसके बाद सभी सदस्यों के संदेश या रचनाएं आप के ईमेल इनबौक्स में प्राप्त करेंगे। आप इस मंच पर अपनी भाषा में विचारों का आदान-प्रदान कर सकेंगे।
    कोई भी सदस्य इस समूह को सबस्कराइब कर सकता है। सबस्कराइब के लिये
    http://groups.google.com/group/ekmanch
    यहां पर जाएं। या
    ekmanch+subscribe@googlegroups.com
    पर मेल भेजें।
    [अगर आप ने अभी तक मंच की सदस्यता नहीं ली है, मेरा आप से निवेदन है कि आप मंच का सदस्य बनकर मंच को अपना स्नेह दें।]

    ReplyDelete