वर्त्तमान सन्दर्भों में चार पंक्तियाँ -----
आँधियों को था गुमां, तोड़ देंगी शाख को,
जला कर गुलशन सारा, उड़ा देंगी राख को।
दूब थी संस्कारवान, विनम्रता से झुक गयी,
आँधियों का दर्प सारा, मिल गया ख़ाक को।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
आँधियों को था गुमां, तोड़ देंगी शाख को,
जला कर गुलशन सारा, उड़ा देंगी राख को।
दूब थी संस्कारवान, विनम्रता से झुक गयी,
आँधियों का दर्प सारा, मिल गया ख़ाक को।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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