श्री माँ त्रिपुर बाला सुन्दरी देवी मेला, देवबन्द (सहारनपुर) में आयोजित संस्कृत-हिंदी सम्मेलन मे भाग लेने का अवसर मिला। आयोजकों की सहृदयता से मुझे इस कार्यक्रम मे मुख्य अतिथि का पद ग्रहण का शुभावसर भी प्राप्त हुआ। विश्व में संस्कृत एवं हिंदी के बढ़ते प्रभाव तथा महत्ता पर मुझे भि अपने विचार रखने का अवसर मिला। संस्कृत का एक आशय संस्कृति भि है यानि वह भाषा जो देव वाणी के रूप प्रस्फुटित हुयीं और सभ्यता-संस्कृति की संवाहक व पोषक बणी तथा जिसके कार्य को हिंदी ने अपनि सरलता व सहजता से आग बढ़ाया, आज विश्व पटल पर दस्तक दे रही है।
श्री स्वामी शान्तनु जी महाराज (प्राचार्य-गुरुकुल सिद्ध कुटी)ने विस्तार से अपने विचारों को रखा। अन्य वक्ताओं ने भी कविताओं के माध्यम से संस्कृति, सभ्यता तथा भारतीयता के साथ साथ राष्ट्र प्रेम पर अपनि रचनायें प्रस्तुत की।
कार्यक्रम के अन्त मे संस्कृत-हिंदी परिषद के अध्यक्ष तथा अन्य महानुभावों द्वारा मुझे साहित्य-भूषण की मानद उपाधि तथा अंग वस्त्र से सम्मानित किया गया। मैं सभी आयोजकों का आभारी हूँ। भाई लोकेश वत्स जी के सञ्चालन ने कार्यक्रम को भव्यता के उच्च शिखर तक गरिमा प्रदान की।
श्री स्वामी शान्तनु जी महाराज (प्राचार्य-गुरुकुल सिद्ध कुटी)ने विस्तार से अपने विचारों को रखा। अन्य वक्ताओं ने भी कविताओं के माध्यम से संस्कृति, सभ्यता तथा भारतीयता के साथ साथ राष्ट्र प्रेम पर अपनि रचनायें प्रस्तुत की।
कार्यक्रम के अन्त मे संस्कृत-हिंदी परिषद के अध्यक्ष तथा अन्य महानुभावों द्वारा मुझे साहित्य-भूषण की मानद उपाधि तथा अंग वस्त्र से सम्मानित किया गया। मैं सभी आयोजकों का आभारी हूँ। भाई लोकेश वत्स जी के सञ्चालन ने कार्यक्रम को भव्यता के उच्च शिखर तक गरिमा प्रदान की।
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