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Saturday, April 12, 2014

muktak-milataa hun roj khud se

मिलता हूँ रोज खुद से, तभी जान पाता हूँ,
गैरों के गम से खुद को, परेशान पाता हूँ।
गद्दार इंसानियत के, जो खुद  खातिर जीते,
जमाने के दर्द से मैं, मोम सा पिघल जाता हूँ। 


डॉ अ कीर्तिवर्धन 

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