मिलता हूँ रोज खुद से, तभी जान पाता हूँ,
गैरों के गम से खुद को, परेशान पाता हूँ।
गद्दार इंसानियत के, जो खुद खातिर जीते,
जमाने के दर्द से मैं, मोम सा पिघल जाता हूँ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
गैरों के गम से खुद को, परेशान पाता हूँ।
गद्दार इंसानियत के, जो खुद खातिर जीते,
जमाने के दर्द से मैं, मोम सा पिघल जाता हूँ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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