राजनैतिक दलों ने नहीं सीखा हार से सबक और शुरू कर दिया मतदाताओं का अपमान करना ---------------
मित्रों, लोकतंत्र में चुनाव ,जिसमे देश की जनता को अपने सांसद या जनप्रतिनिधि चुनने का अधिकार है, की प्रक्रिया समाप्त हो चुकी है। सारे देश में कांग्रेस की नीतियों, भ्रष्टाचार तथा तुष्टिकरण के विरुद्ध आक्रोश था। साथ ही साथ क्षेत्रीय दलों पर भी कमोबेश तुष्टिकरण का आरोप, बढ़ता हुआ अपराधों का दायरा, जनता में असुरक्षा की भावना आदि अनेक आरोप लगते रहे थे। जिसके कारण देश की जनता ने भाजपा को अत्याधिक विजय प्रदान की।
मित्रों, उत्तर प्रदेश में भाजपा ने 71 +2 = 73 सीटों पर विजय प्राप्त की। समाजवादी पार्टी के नेता आज़मख़ाँ ने एक बयान में कहा कि भाजपा को उत्तर-प्रदेश में मात्र 48 % वोट मिले और प्रदेश की 52 % जनता उन्हें नहीं चाहती है। जिस दल को 80 में से 73 सीट मिली उसे जनता नहीं चाहती और जिसे कुल 5 सीट मिली वह अपनी हार का कारण जानने के स्थान पर अनाप-शनाप बकवास कर रहा है। आपको यह भी बता दें कि इस चुनाव में भाजपा को उत्तर-प्रदेश में 48 % तथा समाजवादी को जिसकी प्रदेश में बहुमत की सरकार थी, उन्हें मात्र 19% वोट मिले यानी उन्हें सत्ता पर काबिज होने के बावजूद 81 % लोगों ने ठुकरा दिया।
यही हाल कांग्रेस, आर जे डी, (लालू), नितीश की पार्टी, मायावती की बहुजन विकास पार्टी तथा अन्य किसी भी दल का हुआ है। अब बात केवल इतनी है कि इन हारे हुए लोगों को यह अधिकार किसने दिया कि जनता का अपमान करें जिसने अपने विवेक से भाजपा को वोट दिया। यह हारे हुए सियासी दल यह भूल रहे हैं कि सारे चुनाव में इन लोगों के पास जनता के लिए कोई एजेंडा ही नहीं था, इनकी सोच और एजेंडा बस एक ही था -भाजपा और मोदी विरोध।
अफ़सोस इस बात का भी है कि इनमे से किसी के भी पास आज भी कोई जनता के हित का मुद्दा नहीं है। आज भी इनकी राजनीति केंद्र भाजपा और मोदी तक सीमित है।
हमें लगता है कि ऐसे व्यक्तियों तथा राजनैतिक दलों को जो जनता के निर्णय का स्वागत नहीं कर सकते तथा कानून सम्मत चुने गए सांसदों का विरोध करते हैं ,आगामी समय में जनता उनको और अधिक औकात सीखा दे।
चुनाव के दौरान अपनी पार्टी तथा प्रत्याशी के समर्थन में प्रचार सबने किया। फैसला जनता ने दे दिया। अब किसी को भी यह अधिकार नहीं है कि वह जनता का या चुने हुए सांसदों का अपमान करे।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
chune gaye sansado aur janataa kaa apamaan
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