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Saturday, May 31, 2014

katara-katara simatati jindagi

कतरा-कतरा सिमटती जिंदगी, जब रात में आराम पाती है,
ख़्वाबों के दरम्यां, करवटों के बीच, तेरी याद आती है।
सहर होगी, कटेगी जिंदगी, फिर यूँ ही कतरा- कतरा,
ख़्वाबों के इन्तिज़ार में, मेरी सुबह-शाम गुजर जाती है।


डॉ अ कीर्तिवर्धन  

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