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Monday, October 20, 2014

dhanterash--diwali se poorv

धनतेरस
दीपावली पर्व कि बात करने से पहले कुछ बात धनतेरस यानी धन्वन्तरी त्रयोदशी के बारे में भी बता दूँ। पौराणिक कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन के समय अमृत कलश धारण किये भगवान धन्वन्तरी प्रकट हुए थे | भगवान धन्वन्तरी ही आयुर्वेद के जनक कहे जाते हैं और यह ही देवताओं के वैध भी माने जाते हैं | कार्तिक कृषना त्रयोदशी उन्ही भगवान धन्वन्तरी का जन्म दिवस है जिसे बोलचाल कि भाषा में धनतेरस कहते हैं | सभी सनातन धर्म के अनुयायी भगवान धन्वन्तरी जी के प्रति इस दिन आभार प्रकट करते हैं | भगवानधन्वन्तरी का गूढ़ वाक्य आज भी आयुर्वेद में प्रमुखता से प्रयोग किया जाता है----
"यस्य देशस्य यो जन्तुस्तज्जम तस्यौषधं हितं |
अर्थात जो प्राणी जिस देश व परिवेश में उत्पन्न हुआ है उस देश कि भूमि व जलवायु में पैदा जड़ी -बूटियों से निर्मित औषध ही उसके लिए लाभकारी होंगी |
इस गूढ़ रहस्य को हमारे मनीषियों ने समझा और उसी के संकल्प का दिन है " धनतेरस " | यह अलग बात है कि अनेक कारणों से वर्तमान में आयुर्वेद का प्रचार -प्रसार धीमा पड़ गया है | इस धनतेरस पर हम संकल्प लें कि भगवान धन्वन्तरी जी द्वारा स्थापित आयुर्वेद चिकित्सा का यथा संभव प्रचार-प्रसार एवं संरक्षण कर सुखी ,समृद्ध राष्ट्र का निर्माण करें | आज ही के दिन प्रदोष काल में यम के लिए दीप दान एवं नैवेध अर्पण करने का प्रावधान है | कहा जाता है कि ऐसा करने से अकाल मृत्यु से रक्षा होती है | मानव जीवन को अकाल मृत्यु से बचाने के लिए दो वस्तुएं ही आवश्यक हैं --प्रकाश = ज्ञान तथा नैवेध = समुचित खुराक |
यदि यह दोनों वस्तुएं प्रचुर मात्र में दान दी जाएँ तो निश्चय ही देशवासी अकाल मृत्यु से बचे रहेंगे|
dr a kirtivardhan
8265821800

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