जय-विजय के फेर में, मैं कभी पड़ता नहीं,
कर्म करता चल रहा, कभी हार से डरता नहीं।
ढूंढता हूँ हार में भी, जीत की राहों को मैं,
तारीफ़ में दुश्मन कसीदे, यूँही मेरी पढ़ता नहीं।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
कर्म करता चल रहा, कभी हार से डरता नहीं।
ढूंढता हूँ हार में भी, जीत की राहों को मैं,
तारीफ़ में दुश्मन कसीदे, यूँही मेरी पढ़ता नहीं।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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