तूफां से सागर की पहचान नहीं होती ,
झील कितनी भी बड़ी हो ,सागर नाम नहीं होती ।
गर दुष्टों को सम्मान मिला करता जमाने में,
शराफत की कोई पहचान नहीं होती ।
बनता है कोई सागर सा,मन की गहराइयों से ,
टूटी तलवार की कोई मयान नहीं होती ।
हीरे , मोती, माणिक के सब हैं लुटेरे,
हर निगाह ज्ञान के मोती की कद्रदान नहीं होती ।
किसी-किसी पे बरसती है रहमत खुदा की,
बेईमानों की कीमत,उनकी जुबान नहीं होती ।
भागते हैं जो लोग फकत दौलत के पीछे ,
ईमानदारी की बातें ,उनका ईमान नहीं होती ।
छुपा है खजाना बेहिसाब ,सागर की गहराइयों में ,
बिना उतरे गहराई में ,कुदरत मेहरबान नहीं होती ।
सोच कर मन्जर बर्बादी का,तूफां से पहले,
मछुवारों की बस्ती , वीरान नहीं होती ।
मुश्किल में अक्सर , भाग जाते हैं छोड़कर,
बुजदिलों की कोई आन-बान -शान नहीं होती ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
“विद्या लक्ष्मी निकेतन “
53 महालक्ष्मी एन्क्लेव ,
मुज़फ्फरनगर -251001 उत्तर प्रदेश
8265821800
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