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Tuesday, November 4, 2014

geet bhi rahenge, gazal bhi rahegi

गीत भी रहेंगे, ग़ज़ल भी रहेगी, नयी विधाएँ आएँगी,
कुंडली, सोरठा और मुक्तक, अपनी धाक जमाएंगी।
नयी कविता, कहीं हाइकू, ताँका-हांका सब होंगे,
बिना छंद और बिना द्वन्द के, जग को राह दिखाएंगी।

डॉ अ कीर्तिवर्धन

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