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Friday, November 28, 2014

virodh pradarshan

                             विरोध प्रदर्शन

देशभर में जगह जगह किसी न किसी बात पर सदा ही विरोध प्रदर्शन होते रहते हैं। विगत कुछ वर्षों से विरोध प्रदर्शन का मतलब हिंसा -आगजनी से जुड़ गया है। इसके पीछे कौन लोग हैं, उनका उद्देश्य क्या है ? इसे गंभीरता से जांच कर सख्त कार्यवाही होनी चाहिए। विरोध का मतलब किसी भी हिंसा को प्रश्रय देना नहीं हो सकता।
दूसरी और सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात --किसी भी विरोध के पीछे के कारणों पर विचार करना चाहिए कि क्या विरोध सही था, यदि हाँ तो किन लोगों और नीतियों के कारण जनता विरोध पर उतरी, उस पर विचार तुरंत किया जाए।
कुछ उदाहरण --बैंक कर्मचारियों का वेतन समझौता नवम्बर 2012 से पेंडिंग पड़ा है, बैंक कर्मचारी बार-बार जल्द समझौता करने के लिए आग्रह कर रहे हैं लेकिन सरकार तथा वित्त मंत्रालय व इंडियन बैंक असोसिएशन के अधिकारी जानबूझ कर समझौते को टाल रहे हैं जिसके लिए बैंक कर्मचारी एक दिन की हड़ताल कर  विरोध दर्ज करा चुके हैं और शीघ्र ही पुनः हड़ताल के लिए तैयार हैं।  सवाल यह है कि इस देरी के लिए जिम्मेदार कौन है, बैंक कर्मचारी अथवा शीर्ष पदों पर बैठे वह अधिकारी जो बैंकों को दिन रात चूना भी लगा रहे हैं।
देशभर में कानून की बिगड़ती व्यवस्था के विरोध में जब नागरिक प्रदर्शन करते हैं तो उन्हें अराजक बताया जाता है। प्रश्न यह ही कि कानून व्यवस्था बनाने की जिम्मेदारी किसकी ?क्यों रसूक वाले अपराधी खुले घूम रहे हैं ? क्यों पुलिस मुजरिमो को लेनदेन कर छोड़ देती है ?
हमारा सभी उच्चाधिकारियों से विनम्र निवेदन है कि जिन कारणों से कहीं विरोध हो उसका तुरंत पता किया जाए तथा नियम, कानून के दायरे में जल्द से जल्द समस्या का निदान हो, विलम्ब की स्थिति में सम्बंधित अधिकारी के खिलाफ भी कार्यवाही हो। साथ ही हिंसा करने वालों के खिलाफ भी सख्त कदम उठाये जाएँ।

डॉ अ कीर्तिवर्धन

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