दहशतगर्दों के द्वारा ईराक, पाकिस्तान व सीरिया जैसे देशों में निरंतर अबोध- निर्दोष लोगों की ह्त्या की जा रही है, भारत भी इस आग से झुलस रहा है। पाकिस्तान के पेशावर में तथा ईराक में अनेकों मासूम क़त्ल कर दिए गए और उनकी माताएं बिलख रही हैं। सवाल यह भी है कि जब हमारा कोई नजदीकी मरता है तब ही दर्द का अहसास क्यों ? क्यों नहीं हम सब एकजुट होकर दशतगर्दों व उनको शरण देने वाले हुक्मरानों के खिलाफ आवाज उठाते हैं ?
पेशावर की घटना के बाद बिलखती माँओं को देखने के बाद ------
दर्द भरे उन लम्हों को, कैसे शब्दों में बाँधू,
बह रहे माँओं के आँसूं, कैसे पलकों में थामूँ ?
आकुल मन, सुनने को जिसकी किलकारी,
लाशों के महाढेर में,कैसे उसकी लाश तलाशूँ ?
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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