समाज को आयने में उतारते -डॉ सूरज ‘मृदुल’
यूँ तो मेरी भेंट डॉ सूरज मृदुल से कभी नहीं हुयी मगर अनेक पत्र-पत्रिकाओं में आपको निरंतर पढ़ते रहने से लेखकीय परिचय तो बहुत समय से था। वर्ष 2009 -10 की बात है मैंने डॉ रमेश नीलकमल जी कहानी ‘ नया घासीराम’ पर “दलित मानसिकता के बदलते आयाम” के नाम से परिचर्चा का प्रारम्भ किया था। उसके प्रत्युत्तर में मुझे डॉ सूरज मृदुल जी के विचार तथा ‘ मोर वाले लडके की कतार’ पुस्तक प्राप्त हुयी थी। मैंने पुस्तक में संग्रहित सभी 21 कहानियों को पढ़ा और अपने विचारों को प्रेषित किया।
डॉ मृदुल की साहित्यिक यात्रा का चौथा दशक चल रहा है। इस बीच उनकी लगभग 20 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमे कविता, कहानी, बाल साहित्य, संस्मरण के साथ साथ स्वास्थ्य पर भी लिखा गया है। यूँ कहें की मृदुल जी विभिन्न विधाओं के सिद्धहस्त साहित्यकार हैं।
मुझे याद है एक बार फोन पर वार्ता करते समय आपने कहा था “मन में जब भाव उमड़ते हैं और वे कागज़ कलम उठाने को विवश करते हैं तब मैं स्वयं को शांत व संयत महसूस करता हूँ। यही मेरे लेखक होने का प्रमाण भी है।” उनके वक्तव्य से स्पष्ट है कि डॉ सूरज व्यवसायिक साहित्यकार नहीं अपितु आत्मा की आवाज़ पर भावनाओं को शब्द देने वाले मानवीय मूल्यों के संरक्षक हैं। यही कारण है कि उनकी सारी कविता, कहानी समाज के इर्द-गिर्द ही घूमती हैं। वरिष्ठ साहित्यकार अश्विनी कुमार अलोक ने उनकी कहानियों को पढ़कर कहा था -’डॉ मृदुल की कहानियां शहर के गुप्त रोग में दखल का अहसास कराती हैं। कारण स्पष्ट भी है कि डॉ सूरज एक तो अपनी कहानी के पात्रों का चयन समाज के पिछड़े, दबे, कुचले वर्ग से करते हैं दूसरे समाज में फैली कुरीतियों पर सीधा प्रहार करते हैं।
डॉ सूरज केवल साहित्यकार नहीं हैं -, वह तो उससे भी पहले समाजसेवी हैं ------
दुःखी-निर्धनों की सेवा ही, जिसका लक्ष्य बन गया,
बच्चों को साक्षर बनाना, जिसका लक्ष्य बन गया।
‘सूरज’ बनना जान गया, ‘मृदुल’ स्वभाव के कारण,
समाज के हित में जीना, जिसका लक्ष्य बन गया।
निर्धनो, असहायों की सेवा, विकास का सपना तथा दर्द को सूरज जी ने अपनी कहानियों में पिरोया। जहाँ तक ‘मोर वाले लडके की कतार’ कहानी संग्रह बात है तो यह शीर्षक एक पौराणिक कहानी पर आधारित है और इसी शीर्षक से एक कहानी भी संग्रह में मौजूद है। पुस्तक की सभी कहानियां अपने इर्द-गिर्द के सामाजिक परिवेश को दर्शाती लेकिन सकारात्मक तथा भावनात्मक स्तर पर आंदोलित कराती कहानियां हैं। ‘मोर वाले लडके की कतार’ कहानी में आदर्श व्यवहार तथा सामूहिक सहयोग का उदाहरण प्रस्तुत किया गया है -बिना दहेज़ शादी करने के उद्देश्य से गरीब परिवार की लड़की का चयन करना गोपाल बाबू व मदन की प्रगतिवादी सोच का ही परिचायक है।
सूरज की विशेषता है समाज को रोशन करना और नाम को सार्थक चरितार्थ करते मृदुल भी इससे पीछे नहीं हैं-----
सूरज किसी परिचय का मोहताज नहीं होता,
सूरज सिर्फ आग का गोला, नाम नहीं होता।
बांटता है रोशनी, ऊर्जा और जीवन, जग को,
सुबह मृदुल सूरज, तम से भयभीत नहीं होता।
मृदुल जी की साहित्य यात्रा के दौरान मील के पत्थर के मानिंद उनकी पुस्तकें समाज को मंजिल का पता बताती रहेंगी। डॉ मृदुल जी की इस साहित्यिक यात्रा के मील के कुछ पत्थरों को संजोने का मेरा छोटा सा प्रयास ---
बैसाखियों के सहारे चलते, एक टुकड़ा सुख को तरसते,
गरीब लोगों का दर्द, जो कहानी के करीब होने को तरसते।
फतेहपुर वाली भाभी की कही बातें और कुछ व्यंग बाण,
द्रवीभूत होते क्षणों में, किसी के सामीप्य को तरसते।
जो लौटकर नहीं आये, उन शूरवीरों की गाथा सुनाते,
खुशियों की गुदगुदी मंजिल सफर में पाने को तरसते।
औरत है महान किस्से सुनाते, कवितांजलि से श्रद्धांजलि,
रानी लक्ष्मीबाई सा जौहर, देखने को आज नयन तरसते।
स्वास्थ्य दर्शन की बात करें, ऋतू गंध की पहचान,
अंधेरों में रहने वाले, सूरज की रौशनी को तरसते।
अब मैं चल रहा हूँ ऊर्जा बांटता,प्रातः मृदुल सूरज की तरह,
जो लौटकर नहीं आये, उनसे मिलने को लोग तरसते।
बांसुरी वालाजादूगर, ज्ञानभरी कहानियों का खजाना,
मोर वाले लडके की कतार, मंच पर देखने को तरसते।
डॉ सूरज मृदुल किसी भी परिचय के मोहताज नहीं हैं। यू एस एम पत्रिका द्वारा उनकी षष्ठी पूर्ति के शुभावसर पर अभिनन्दन ग्रन्थ के प्रकाशन का निर्णय एक सराहनीय पहल है। किसी भी साहित्यकार का सामाजिक मूल्याङ्कन उसके इष्ट-मित्रों द्वारा साहित्य के माध्यम से ही उसकी पड़ताल करना होता है। मैं अपनी समस्त शुभकामनाएं डॉ मृदुल को प्रेषित करता हूँ कि वह निरंतर स्वस्थ रहते हुए अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज को जागृत करते रहें।
पुनः डॉ सूरज मृदुल के व्यक्तित्व को समर्पित ----
देश-विदेश में प्रकाशित, भारत का रोशन नाम करें,
भाषाओं के बंधन तज, साहित्य का निर्माण करें।
गीत, कविता, औ’कहानी, सभी विधाओं के अधिकारी,
शिक्षित बने राष्ट्र के बच्चे, शिक्षा का अभियान करें।
अनूदित कर जिसकी रचनाएं, गौरवान्वित भाषाएँ हों,
असम, मराठा, राजस्थानी, उस सूरज का मान करें।
‘आकाशवाणी’ हुयी गौरवान्वित, मृदुल की बात सुना,
कर अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित,सूरज का सम्मान करें।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
विद्यालक्ष्मी निकेतन
53 महालक्ष्मी एन्क्लेव
मुज़फ्फरनगर-251001 उत्तर-प्रदेश
08265821800
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