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Monday, February 9, 2015

bajraang dham shukrtaal

बज्रांग धाम ( हनुमद्धाम ) शुक्रताल ( मुज़फ्फरनगर )

फाल्गुन पूर्णिमा संवत 2042  को श्रीमत चैतन्य महाप्रभु का 500  वां जन्म दिवस था।  चाकुलिया (बिहार)  में 511  दिन तक चलने वाले इस उत्सव में देश के अनेकों संतों के साथ श्री सुदर्शन जी महाराज भी मौजूद थे, वही इस आयोजन के निर्देशक भी थे। संतों की इस संगोष्ठी में भगवान राम नाम को कागजों पर लिपिबद्ध करने की चर्चा हुई तथा पांच करोड़ राम नाम लिखने का लक्ष्य बनाया गया। उपरोक्त कार्यक्रम की समाप्ति से पूर्व ही राम नाम लिखने का यह लक्ष्य पूर्ण हो गया। अब चर्चा इस बात पर प्रारम्भ हुयी  कि पूजित भगवान राम नाम का यह विशाल संग्रह सुरक्षित कैसे रखा जाए ?

अनेक सुझावों व चर्चाओं के उपरांत श्री सुदर्शन "चक्र" जी महाराज के सुझाव  कि "राम नाम रसिक श्री हनुमान जी स्वयं में राम नाम साधना की साक्षात् प्रतिमूर्ति हैं। उनके रोम रोम में श्री राम नाम समाहित है। क्यों न किसी पवित्रतम स्थान पर श्री हनुमान जी का विशाल विग्रह निर्मित कराया जाये, जिनके अंग-प्रत्यंग में यह करोडो भगवान राम नाम सदा सदा के लिए सुरक्षित कर दिए जाएँ।"  श्री चक्र जी महाराज के इस पवित्र विचार का सभी ने स्वागत किया और हनुमद्धाम बनाने के वास्ते रूप रेखा तैयार की जाने लगी।

स्थापना स्थल की खोज --
देश के सभी हिस्सों में इस अद्भुत बज्रांग धाम के निर्माण के लिए उचित स्थान की खोज की जाने लगी। अंत में श्री चक्र जी महाराज के बाल सखा एवं अभिन्न मित्र अनन्त श्री अखंडानंद जी सरस्वती महाराज, वृन्दावन(अध्यक्ष -भारत साधू समाज) के साथ चर्चा के पश्चात् श्री मद्भागवत उदगम स्थली शुक्र तीर्थ पर राम भक्त हनुमान का विशाल विग्रह बनाने का निर्णय लिया गया। जिसके निर्माण का दायित्व  शुकतीर्थ के “श्री राम आध्यात्मिक प्रन्यास” को, जिसके संस्थापक महँ कर्मयोगी नै. ब्र. श्री इंद्र कुमार जी       (अब स्वामी केशवानंद जी) जिन्हें साधू समाज में विश्वकर्मा की सिद्धि प्राप्त माना जाता है,  को दिया गया | स्वामी जी की प्रेरणा से शुक्रतीर्थ पर विशाल विग्रह के निर्माण के हेतु भूमि  श्री राम भक्त नरेला(दिल्ली) निवासी श्री राजेंदर प्रसाद सिंघल जी ने श्रीराम आध्यात्मिक प्रन्यास को प्रदान की।
श्री हनुमान जी का विग्रह --प्रांगण
श्री हनुमान जी के विग्रह निर्माण के लिए शिलान्यास 26  मई 1986  को हुआ | विग्रह निर्माण के लिए शहडोल (मध्य प्रदेश ) के सुविख्यात मूर्तिकार श्री केशव राम को बुलाया गया।  

हनुमद्धाम का प्रांगण14 हज़ार वर्ग फुट का है। प्रांगण की उत्तरी सीमा पर बरामदा है।  सतह से चार फुट ऊँचा  3600  वर्ग फुट का चबूतरा है। इस चबूतरे पर आठ फुट ऊँची पीठिका पर श्री हनुमान जी का विशाल विग्रह शोभायमान है। जो चरणों से मुकुट तक 65 फुट 10  इंच ऊँचा है। परन्तु सतह से विग्रह की पूरी ऊंचाई 77  फुट है जो अब तक भारत में बनी श्री हनुमान जी की अन्य प्रतिमाओं में सबसे ऊँची है। इस विग्रह के अन्दर भारत की विभिन्न लिपियों में कागज पर लिखे 700  करोड़ भगवान राम नाम समाहित हैं।  इनका वजन 14 टन है और जिन कागजों पर भगवत नाम अंकित है उसका क्षेत्रफल 10050  घन फुट है | ये तमाम राम नाम के कागज प्लास्टिक पोलीथिन आवरण में सुरक्षित करके विग्रह में स्थापित किये गए हैं।

श्री हनुमान विग्रह --
भगवान श्री राम के परमभक्त श्री  हनुमान जी महाराज का यह विग्रह चित्ताकर्षक, नयनाभिराम एवं कल्याणकारी मुस्कान मुद्रा में स्थित है। इस विग्रह को निहारने से प्रतीत होता है कि अभी अभी इस धरा पर साक्षात् श्री हनुमान जी प्रकट हुए हैं। इनके अंग -उपांग ,वस्त्र-आभूषण-आयुध सभी में श्री राम नाम समाहित है। यह विग्रह बज्रांग है तथा बाएँ हाथ में गदा है जो कि इनका प्रमुख आयुध है। इसे कंधे के सहारे युद्ध कि मुद्रा में नहीं अपितु बाएं चरण के सहारे टिकाकर कमल से बड़ी ही सहजता के साथ संभाले हुए हैं, मानों अपनी शरण में आये जीव को समस्त विघ्न-बाधाओं  तथा लौकिक परितापों से सदा संरक्षण देने का वचन दे रहे हों। दाहिना हाथ आशीर्वाद कि मुद्रा में है। शुक्रतीर्थ  में स्थित इस सुन्दर विग्रह के दर्शनों से ही भक्त एवं साधक में अपूर्व आत्मबल, धैर्य, साहस, अभय एवं शांति का संचार स्वत: होने लगता है।

आठ फुट ऊँची पीठिका जिस पर विशाल हनुमत विग्रह स्थापित है को मंदिर का स्वरुप दिया गया है, जिसमे श्री हनुमान जी कि छोटी मूर्ति है, इसी मूर्ति को विशाल विग्रह के नमूने के तौर पर बनाया गया था। दैनिक मंग्लादर्शन -अभिषेक-पूजा -अर्चना-श्रंगार -सेवा-राजभोग, निर्जन,उत्थापन तथा संध्या आरती,शयन आरती आदि अष्टयाम सेवा इसी मंदिर में स्थित छोटी मूर्ति कि होती है। जिस प्रकार मथुरा वृन्दावन में श्री कृष्ण के विग्रह का श्रंगार किया जाता है, उसी प्रकार इस छोटे विग्रह का प्रतिदिन अलग अलग रंगों के अनुसार वस्त्राभूषण से श्रंगार होता है। इस प्रकार का श्रंगार श्री अवध के अतिरिक्त अन्यत्र कहीं देखने को नहीं मिलता है।   

वानर जाति कि विभिन्न सुन्दर मूर्तियाँ --

विश्व कि जितनी भी वानर जातियां हैं, उनकी मूर्तियों से सीमा प्राचीर कि सज्जा कि गई है। ये तमाम वानर परकोटे के किनारे पर बड़ी ही जीवंत प्रतीत होती हैं। हनुमद्धाम के प्रमुख विशाल दरवाजे पर भारतीय कपि लंगूर ,सुग्रीव कपि (इंडोनेशिया) की सजीव मूर्तियाँ स्थापित हैं। इसी प्रकार श्री लंका, जापान, चाइना, आइसलैंड, इथोपिया, सैनदियागो, ब्ल्यूअफ्रीका, वियेतनाम ,पश्चिमी अफ्रीका, सुमात्रा, बोर्निया, जावा, अमेरिका तथा दुनिया के अन्य देशों के कपियों कि मनोरम मूर्तियाँ स्थापित हैं।

हनुमद्धाम में पधारने वाले संत-महात्माओं एवं  श्रधालुओं के लिए भक्तों व धाम के सहयोग से प्रात: चाय,जलपान की व्यस्था है, मध्यान्ह 11बजे से दोपहर तथा रात्रि आठ बजे से भोजन प्रसाद  की व्यस्था है।

डॉ अ कीर्तिवर्धन

8265821800

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