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Sunday, February 1, 2015

maanavataa prahari amar baaniyaa lohoro

मानवता प्रहरी ---अमर

               “जीवन चित्र” सजा काव्य में, मानवता की बात करे,
               “अमर” सदा काव्य हो जाए, सकारात्मक संवाद करे।
                नेपाली जिसकी मातृ भाषा और हिंदी का प्रचार करे,
               “भावधन” और “काव्याणु”, कृति का निर्माण करे।
                यथार्थ की भावभूमि पर, मजबूती से खड़ा हुआ,
                सत्यं-शिवम्-सुन्दरम सा,साहित्य का संधान करे।
                प्रकृति का सजग प्रहरी, आत्मविश्वास से भरा हुआ,
                पूर्वोत्तर से सूर्य किरण सा, अन्धकार का नाश करे।

कविता क्या है ?  इस विषय पर अनेक विद्वानों ने अनेक व्याख्याएँ दी हैं। आचार्य भरत मुनि तथा आचार्य विश्वनाथ ने रास की प्रधानता पूर्ण वाक्य को ही काव्य की संज्ञा दी है।
मेरा मानना है कि कविता भावों की वह अभिव्यक्ति है जो शब्दों में ढलकर पाठक व श्रोता तथा स्वयं को भी भाव विभोर कर दे और सरल सपाट भाषा में अपना मंतव्य स्पष्ट कराती हुयी प्रभाव छोड़ने में समर्थ भी हो। अगर इन कसौटियों पर अमर बानियों लोहोरो को पढने का प्रयास किया जाए तो वह अपनी काव्याभिव्यक्ति में 24 कैरट का खरा सोना हैं। उनके ‘भावधन’, काव्याणु तथा ‘जीवन चित्र’ तीन संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। तीनो ही संग्रह में उनका मूल स्वर नेपाली में सामने आया जिसका अंग्रेजी तथा हिंदी में अनुवाद भी हुआ।
सन 2009 मई माह में शिलांग (मेघालय) में मेरी अमर से भेंट हुयी और अनेक विषयों पर विस्तृत चर्चा भी। कविता के प्रति उनकी गहन रूचि, समाज का आकलन कराती उनकी दृष्टि, रिश्तों का मूल्यांकन करने की शैली तथा सभी विषयों पर सारगर्भित मगर सरल  शब्दों को काव्य में पिरोने की कला से मैं अभिभूत था। मैंने महसूस किया की अमर भाई बोलने में शब्दों के साथ कंजूसी करते हैं मगर प्रत्येक बात / विषय को आत्मसात ज्यादा करते हैं। आतंरिक संवाद से स्वयं को जानने का प्रयास और फिर कागज़ पर शब्दों द्वारा विम्ब बनाने की कला उन्हें अन्य कवियों से अलग कराती है।

                          मौन रहकर भी मुखर जो हो रहा   
                          भाव कविता में प्रकट वह हो रहा।

गंगटोक की सुरम्य पहाड़ियों में प्रकृति के बीच जन्मे, पले -बढे अमर का जीवन दार्शनिकता के भाव से ओत-प्रोत है। मुझे ज्ञात हुआ कि “लोहोरो” का अर्थ सिलबट्टा भी है। इस सन्दर्भ में अगर देखूं तो अमर बानियों समाज की विकृतियों को अपनी सूक्ष्म दृष्टि से विश्लेषण कर उनमे अच्छाई का नमक- मिर्च व मानवता की हल्की सी खटाई लगाकर सिलबट्टे पर पीसकर समाज को जागृत करने वाली कविता रुपी चटनी तैयार कर बहुत बड़ा कार्य कर रहे हैं।

                      अंधेरों से जूझना मेरी फितरत है
                      सूरज की किरण सा मुसाफिर हूँ।
                      डूबकर भी निकल आने का हौसला
                      बाँटता हूँ ऊर्जा कभी थकता नहीं हूँ।

अमर बानियों की साह्त्यिक यात्रा निर्बाध गति से हुए समाज का मार्गदर्शन करती रहे और अमर भाई जीवन पथ में नित नए आयाम स्थापित करते रहें, मेरी अशेष शुभकामनाएं।


डॉ अ कीर्तिवर्धन
विद्यालक्ष्मी निकेतन
53 महालक्ष्मी एन्क्लेव

मुज़फ्फरनगर -251001 उत्तरप्रदेश  

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