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Saturday, March 14, 2015

vartmaan halchal -samikshaa

33/ 15                                                                             दिनांक-14/03/2015

श्रीमती गिरिजा शर्मा
संपादक- “वर्तमान हलचल”
78 नवयुग मार्केट,
ग़ाज़ियाबाद -201001 उत्तर-प्रदेश
आदरणीया गिरिजा जी, सादर नमस्कार।
                   देश में हर और देखो, आज हो रही हलचल,
                   आदर्शो की दे दुहाई, ‘आप’ भी हो रही चंचल।
                   सत्ता पाने को आतुर, मुफ्त का जाल बिछाते,
                   वर्तमान हालात में सियासी, बढ़ गयी हलचल।
मेरे मित्र श्री अनिल माथुर जी के सौजन्य से आज सुबह ही ‘वर्तमान हलचल’ का फरवरी अंक मिला। सुबह तो कार्यालय जाने की जल्दी थी मगर शाम को आते ही पूरा अंक पढ़ा।
आपके सम्पादकीय के तेवर समझे। मेरे अनुसार साहित्यकार भूतकाल से प्रेरणा लेकर वर्तमान के धरातल पर खड़ा होकर भविष्य के सपने देखने में निपुण होता है।  साहित्यकार अगर वर्तमान का चित्रण करता है तो भी अपनी कल्पना शक्ति तथा यथार्थ को समझकर समाज को नया सन्देश अवश्य देता है। और यही साहित्य जब युगों बाद पढ़ा जाता है तब वह उस काल खंड को प्रतिबिम्बित करता है।
                                            जो लिखा गया वह तहरीर बन गया,
                                      मेरा लिखा पत्थर की लकीर बन गया।
                                      चाहोगे गर मिटाना मिट ना सकेगा,
                                      किताब में छप कर वो नजीर बन गया।
श्रीमती पुष्प पाल का आलेख ‘हिंदीतर विद्वानो का राजभाषा ----’ पढ़ा। वर्तमान में भी देखें तो हिंदी की विकास यात्रा में अहिन्दी भाषी क्षेत्र के साहित्यकारों का ही योगदान है। मूल प्रश्न  हिंदी की यात्रा को अहिन्दी राज्यों की जनता के बीच प्रचारित प्रसारित करना ही है।
आचार्य मुनीश जी ने बहुत कम शब्दों में विकराल समस्या का जीवंत चित्र खींचा है।  केवल मीडिया की नहीं अपितु हमारे लुप्त होते संस्कारों की है। डॉ हरी सिंह पाल ने इतिहास में झांकने का सार्थक प्रयास किया है। नयी पीढ़ी को विरासत की जानकारी अति आवश्यक है। साहित्यकार अवसाद का शिकार --भाई साजन बालियान को पढ़ा। मुझे लगता है कि साहित्यकार अवसाद का शिकार नहीं होता अपितु महत्वाकांक्षायें उसे शिकार बनाती हैं। साहित्य जगत में भी आदिकाल से भाई-भतीजा वाद प्रभावी रहा है। दूसरों को मिलने वाला मान- सम्मान प्रतिष्ठा कुछ लोगों के लिए असहनीय होती है। वह लोग जब किसी का मूल्यांकन नफ़रत की कसौटी पर करते हैं तो अवसाद का शिकार होने
के अवसर बढ़ जाते हैं।  मेरा मानना है कि साहित्यकार का काम सृजन करना है -सृजन जो सकारात्मक हो, समाज के हित में हो।  आज नहीं तो आने वाली पीढ़ियां उसका मूल्यांकन अवश्य करेंगी। परम आदरणीय यात्री जी तो साहित्य जगत के सशक्त हस्ताक्षर हैं। भाई पूरन जी  लघु कथा के प्रतिष्ठित कथाकार हैं।
अन्य सामग्री भी पठनीय एवं श्रेष्ठ है। सभी साहित्यकारों को नमन।

शानदार आवरण ने पत्रिका में चार चाँद लगा दिए हैं।

संवाद की प्रतीक्षा में


डॉ अ कीर्तिवर्धन

संलग्नक- गाय को माता क्यों कहते हैं ?

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