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Monday, June 1, 2015

katl bhi meraa huaa mujarim bhi khud hi banaa

क़त्ल भी मेरा हुआ,  मुजरिम भी खुद ही बना,
इश्क़ के खेल में, शिकार औ शिकारी भी बना।
रुसवाई न हो महबूब को, बस यही चाहता रहा,
बिना खंजर अरमानों का, कातिल भी खुद ही बना।

डॉ अ कीर्तिवर्धन

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