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Monday, June 29, 2015

preranaa punj- chhamman

                                    प्रेरणा पुँज ----”छम्मन”
प्राचीन काल में मनोरंजन के साधन कम थे। समय व्यतीत करने के लिए लोग अपने यात्रा वृतान्त, राजा- महाराजाओं के किस्से अथवा धार्मिक बातों को बैठकर साझा किया करते थे। कालान्तर में परिवारों में दादा-दादी और नाना-नानी ने बच्चों को बहकाने के लिए किस्सागोई शुरू की। यह सब कब शुरू हुआ इसका कोई दस्तावेज नहीं मिलता है। मगर दादी- नानी की कहानियां छोटे बच्चों को बहुत लुभाती थी।  अक्सर ऐसा भी होता था कि दादी- नानी की कहानी कहाँ से शुरू हुयी और कहाँ पहुँच गयी, इसका आभास न तो दादी- नानी को होता था और न ही बच्चों को। हमारे धर्म ग्रंथों में चरित्र निर्माण के दृष्टिगत अनेक वास्तविक एवं काल्पनिक तथ्यों को कहानी के माध्यम से संजोया गया। अकबर- बीरबल के किस्सों में बीरबल की बुद्धिमानी, राजा कृष्ण देव और तेनाली राम में तेनाली राम का बुद्धि चातुर्य, विक्रम- बेताल में जटिल प्रश्नों पर विक्रम की न्याय प्रियता की कहानियाँ सदियों से बच्चों- बड़ों को लोकप्रिय रही हैं। आदिकाल से ही हमारे ऋषि- मुनियों ने मनुष्य के चरित्र निर्माण हेतु सरल- सहज भाषा का प्रयोग करते हुए जीवन आदर्शों को स्थापित करने के लिए कहानी को माध्यम बनाया। हमारे बहुमूल्य ग्रन्थ रामायण तथा महाभारत भी आदर्शों को स्थापित करने के लिए लिखी गयी कहानियां ही तो हैं।
कहानी की यह परम्परा धर्म ग्रंथों से निकालकर दादी- नानी के माध्यम से जान- जान तक गंगा की निर्मल धारा की तरह सदियों से प्रवाहमान है। इस पवित्र कहानी धारा को आगे बढ़ाने का भगीरथ प्रयास किया है डॉ इकबाल सिंह “नादान” जी ने।  पेशे से होमियोपैथिक चिकित्सक डॉ नादान जिस प्रकार अपने मरीजों का इलाज मीठी गोलियों से किया करते हैं, ठीक उसी प्रकार बालमन को दिशा देने के लिए उन्होंने कहानियों को माध्यम बनाया।  “छम्मन” जी हाँ उनका पहला कहानी संग्रह जिसमे उन्होंने 13 कहानियों को संकलित किया है, मेरे सम्मुख है। इस कहानी संग्रह की प्रत्येक कहानी सामाजिक पृष्ठभूमि से गुजराती हुयी बालमन को दिशा निर्देश देती जान पड़ती है। “छम्मन” इस संग्रह की पहली तथा प्रतिनिधि कहानी है। इसके माध्यम से समाज के गरीब तथा पिछड़े वर्ग में शिक्षा के प्रति जागरूकता के महत्त्व को दर्शाया गया है। छम्मन की पत्नी शीला के माध्यम से रोटी से भी अधिक शिक्षा तथा सरकारी योजनाओं को समझाने का प्रयास किया गया है।  इसी प्रकार “एक रुपैया” तथा “कागज़ की रद्दी” कहानी भी गरीबी और शिक्षा के हालात व महत्त्व को दर्शाती हैं।
सीमा पर खड़ा है, नींद अपनी गंवाकर,
सुरक्षा में देश की, निज परिवार भुलाकर,
बल की है शान, बस कर्त्तव्य की बातें,
देखता है हरपल, जो शान्ति के सपने --------
आखिर कौन है वह जो जागता है और हम चैन से सोते हैं ? जी हाँ वह सैनिक ही है जो देश की सुरक्षा में हँसते हँसते अपना सर्वस्व न्योछावर कर देता है।  डॉ इकबाल ने अपनी कलम से ऐसे ही वीर सैनिक को “शहादत” कहानी में दर्शाया है। “पश्चाताप के आँसू” भी ऐसी ही मार्मिक कहानी है। सैनिक के कर्तव्य तथा कुर्बानी को शब्दों में संजोकर डॉ नादान ने एक और अपना राष्ट्रीय धर्म निभाया है तो दूसरी और युवा व बालमन को सैनिक बनने की प्रेरणा भी। इस संग्रह की अंतिम कहानी है “जिम्मी”, अगर इस कहानी की चर्चा न की जाए तो सब कुछ अधूरा ही रहेगा। जिम्मी एक गिलहरी की कहानी है। इस कहानी में जितनी संजीदगी से मानवीयता को उकेरा गया है वह अन्यत्र दुर्लभ ही है।  किस प्रकार जिम्मी परिवार की सदस्य बन जाती है और अपनी चौकन्नी निगाहों व आवाज से घर के सदस्यों को हर खतरे से अथवा आगुन्तक से अवगत कराती है, अनुपम है।
डॉ इकबाल सिंह नादान द्वारा रचित सभी कहानियां पढने के पश्चात यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि डॉ नादान मानवीय संवेदनाओं से ओत-प्रोत, सहज सरल भाषा के साथ बाल मन के कुशल चितेरे हैं।  आपकी कहानियाँ न सिर्फ समाज का दर्पण हैं अपितु बच्चों में सभ्यता, संस्कृति एवं संस्कारों की समझ पैदा करने वाली हैं। बच्चे इन कहानियों को सरल तथा रोचक भाषा शैली के कारण खूब पसंद करेंगे और लाभान्वित होंगे।
“छम्मन” कहानी संग्रह यदि पुस्तकालयों में स्थान पा सका तो बहुत ही बेहतर होगा।
मेरी अनेकशः शुभकामनायें कि डॉ इकबाल सिंह नादान जी की लेखनी निरंतर चलती रही और समाज को दिशा- निर्देश देते हुए बालमन को संस्कारित करने में सहायक बनी रहे।

डॉ अ कीर्तिवर्धन
विद्यालक्ष्मी निकेतन
53 -महालक्ष्मी एन्क्लेव
मुज़फ्फरनगर-251001 उत्तरप्रदेश

मो -8265821800  

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