बात समझ लो ---
उम्र हुयी है साठ, मगर अभी युवा मन है,
बच्चों संग फिर शुरू हुआ, मेरा बचपन है।
मुझको बूढ़ा कहने वालो, बात समझ लो,
नयी पीढ़ी से ज्यादा, बूढ़ों में अभी दम है।
गाँव की मिटटी में खेला और बड़ा हुआ हूँ,
घी, दूध खा मजबूत हुआ, मेरा तन है।
कोक- पैप्सी पीने वालों, बात समझ लो,
गाय का घी- दूध आज भी सबसे उत्तम है।
जल्दी उठना, समय से सोना, हमने सीखा,
आयुर्वेद का सार, अध्यात्म का दर्शन है।
देर रात तक जगने वालो, बात समझ लो,
स्वस्थ रहे तन- मन, सदा यह नियम है।
खाली बैठूँ- गप्प लड़ाऊँ या देखूँ पिक्चर,
सोच सोच कर होती मुझको उलझन है।
पढ़ना- लिखना, आगे बढ़ना, बात समझ लो,
मेरी कवितायें ही, मेरे मन का दर्पण है।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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