१५ अगस्त के शुभ अवसर पर ,आज़ादी के संघर्ष की गुमनाम कवि द्बारा लिखी गई
झनाझन जंजीरें बज उठी
छिडी तसले पर तीखी तान
जेल की दीवारों को तोड़
चला बंदी का मादक गान ।
स्वयम मिट जाते जो वीर
न देते मातृ भूमि का मान
दिव्य शुभ मातृ यग mऐ
धन्य बलिदान,धन्य बलिदान.
No comments:
Post a Comment