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Saturday, February 26, 2011

khud ka saaya

कभी-कभी खुद का साया देखकर भी
मैं डर जाता हूँ
धूप कि क्या बात करूँ
छाया मे भी निकालने से घबराता हूँ|
आतंकवाद ने जब से अपनी बाहें फैलाई हैं
नेताओं से उनकी साजिश
सुर्खी मे आई है
मैं बारूद कि गंध कि क्या बात करूँ
सुगंध के व्यापर से भी घबराता हूँ
अब मैं ख्वाबों मे भी
संभल संभल कर चलता हूँ,
मैं खुद का साया देखकर भी घबराता हूँ|
डॉ अ कीर्तिवर्धन
०९९११३२३७३२
kirtivardhan.blogspot.com

1 comment:

  1. अच्छे भाव समेटे बढ़िया रचना .


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