खुदा ना बनाओ
मेरे मालिक!
मुझे इंसान बना रहने दो
खुदा ना बनाओ।
बना कर खुदा मुझको
अपने रहम ओ करम से
महरूम ना कराओ।
पडा रहने दो मुझको
गुनाहों के दलदल में
ताकि तेरी याद सदा
बनी रहे मेरे दिल मे।
अपनी रहमत की बरसात
मुझ पर करना
मुझे आदमी से बढ़ा कर
इंसान बनने की ताकत देना।
तेरी हिदायतों पर अमल करता रहूँ
मुझे इतनी कुव्वत देना।
तेरे जहाँ को प्यार कर सकूं
मुझे इतनी सिफत देना।
मेरे मालिक!
मुझे खुदा ना बनाना
बस इंसान बने रहने देना।
मुझे डर है कहीं
बनकर खुदा
मैं खुदा को ना भूल जाऊँ
खुदा बनने के गुरुर मे
गुनाह करता चला जाऊँ।
मेरे मालिक!
अपनी मेहरबानी से
मुझे खुदा ना बनाना।
सिर्फ़ अपनी नजरें इनायत से
मुझे इंसान बनाना।
गुस्ताखी ना होने पाये मुझसे
किसी इंसान की शान मे
मेहरबानी हो तेरी मुझ पर
बना रहूँ इंसान मैं।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
यह दौर अपने बराहीम की तलाश में है ।
ReplyDeleteसनमकदा है जहाँ , ला इलाहा इल्लल्लाह ।।
http://mushayera.blogspot.com/2011/04/search.html
बहुत ही सुन्दर भाव है शब्दों को बहुत खूबी के साथ पिरोया है आपने रचना में
ReplyDeleteअक्षय-मन "!!कुछ मुक्तक कुछ क्षणिकाएं!!" से