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Sunday, September 18, 2011

gitti fod raha hai

गिट्टी फोड़ रहा है.....

भरी दोपहरी,रुखी रोटी,छाया खोज रहा है,
टूटे फूटे पत्थरों मे भी,सपना खोज रहा है|
दिखलाया था तुमने उसको, स्वपन एक सुहाना,
बन जाऊं मैं राजकुमारी,घर तेरा भी होगा अपना|
आज उसी सपने की खातिर,तुमको खोज रहा है,
घर की बेटी जुदा हो गई,भाग्य कोस रहा है|
धन,संपत्ति,महल बनाये,अब हाथी बना रही हो,
वह तो अब भी घास-फूँस का छप्पर खोज रहा है|
जिसके काँधे चढ़ कर तुम सत्ता तक आई हो,
वह आज भी सड़क किनारे,गिट्टी फोड़ रहा है|
डॉ ए.कीर्तिवर्धन
०९९११३२३७३२

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