Pages

Followers

Wednesday, October 26, 2011

main thahar sakata nahi

मैं ठहर सकता नहीं————
मुश्किलें कितनी भी आएं,मैं कभी डरता नहीं,
चल दिया हूँ जब मैं आगे,फिर कभी रुकता नहीं|
मैं सरल हूँ ‘जल’ के जितना,चाहे जैसा रूप दो,
रुकावटें हों राहों में,लेकिन ठहर सकता नहीं|
तुम मुझे विभक्त कर दो,जर्रा -जर्रा नीर मे,
मैं फिर आगे बढूँगा,जर्रा बन रुक सकता नहीं|

dr a kirtivardhan
9911323732

No comments:

Post a Comment