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Monday, October 15, 2012

vedana

दोस्तों आज एक ऐसे विषय पर  रचना लिख रहा हूँ  जिस पर शायद पहले किसी ने नहीं लिखा हो,आप सबसे निवेदन है कि अपनी प्रतिक्रिया अवश्य  दें ------

वेदना-----
प्रत्येक माह में एक बार
तीन-चार दिन के लिए
जब पीड़ित होती हूँ
एक वेदना से
टूटता है बदन मेरा
आहात होती हूँ
दर्द न सह पाने से
जब मुझे
आवश्यकता होती है
किसी कि संवेदनाओं कि
चाहत होती है
तुम्हारी बाहों में समां जाने कि
तब उस क्षण
तुम ही नहीं
बल्कि
सभी के द्वारा
मैं ठुकरा दी जाती हूँ
अछूत के समान
स्व केन्द्रित बना दी जाती हूँ
यहाँ तक कि
तुम भी मेरे पास नहीं आते हो
 तब मैं टूट सी जाती हूँ
बस उस पल
मरने कि चाह किया करती हूँ  |

फिर अचानक
अगले ही रोज
तुम्हारा प्यार
मुझे जीवन्त कर देता है
अगले माह तक
जीने के लिए |

मैं भूल कर
वेदना के उन पलों को
सिमट जाती हूँ
तुम्हारी बाहों में
पाने को
तुम्हारा अमिट प्यार
इस बार,-बार -बार, हर बार|
डॉ अ कीर्तिवर्धन
8265821800



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