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Monday, November 12, 2012

सूरज ----
सूरज भी हतप्रभ है , और रोशनी भी परेशान है ,
दिन में मानव सो रहा ,और रात में अब काम है |
सूरज खड़ा आँगन में , स्वर्ण कलश लुटा रहा ,
खिड़की दरवाजे बंद हैं , मानव अब तक सो रहा |
पशु ,पक्षी ,पौधों ने ,सूरज का सत्कार किया ,
तन्द्रा अपनी छोड़कर ,सूरज का जय कार किया |
पशु ,पक्षी न कोई पीड़ित ,हृदय के आघात से,
वेदना उनको नहीं ,किसी रक्तचाप से |
सूरज का स्वर्णिम खजाना ,जिस किसी ने पा लिया,
रोशनी को जिन्होंने मन में आत्मसात कर लिया |
नैतिकता की नदी में एक गोता लगा लिया,
मानवता की सीख को उर में बसा लिया |
सम्पूर्ण स्वास्थ्य का खजाना बस उसी ने पा लिया,
प्रभु भक्ति का प्रसाद दिल में बसा लिया |
सूरज फिर हतप्रभ हो, स्वयं को संवारता,
उनके आँगन आ गया ,रौशनी को बांटता |
डॉ अ कीर्तिवर्धन
8265821800

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