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Sunday, November 25, 2012

                                  "सोच ले तू किधर जा रहा है "
वह एक शख्स था,जो मुझको राह दिखा गया ,
बुत के माफिक मैं जिन्दा था,इन्सां बना गया |
क्या नाम दूँ  उस अनजान मुसाफिर को ,
इन्सान से बढ़कर मुझको फ़रिश्ता बना गया |(डॉ अ कीर्तिवर्धन)

विगत ३-४ वर्षों से प्रतिदिन मुझे सुबह सुबह कुछ सन्देश प्राप्त होते थे ,वह सन्देश मात्र सन्देश नहीं अपितु जीवन दर्शन व चिंतन का सार तत्व थे , जो कभी शेर औ शायरी में तो कभी सूक्तियों के माध्यम से मिला करते थे | सन्देश प्रेषक का नाम था 'रघुनाथ मिश्र ' |मैं रघुनाथ मिश्र जी को अनेक पत्र पत्रिकाओं में निरंतर पढ़ता भी रहता था और फिर मैंने अनेक बार उनसे बात भी की | उनकी फेस बुक पर सक्रियता भी निरंतर थी |मगर मुलाकात का अवसर बना " अपना घर" द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में जो भरतपुर में ही आयोजित था | एक हंसमुख व्यक्ति ने मुझसे आकर  पूछा "आप कीर्तिवर्धन जी हैं" मेरे हाँ कहने पर उन्होंने मुझे बहुत ही आत्मीयता के साथ गले लगा लिया और बताया कि वे ही रघुनाथ मिश्र हैं |fiर तो हमारी बहुत देर तक बात होती रही |बातचीत के दौरान मुझे यह जानने का भी अवसर मिला कि किस प्रकार आपके सर से बचपन में माँ बाप का सहारा उठ गया और किन परिस्थितियों में आप आगे बढे और अपनी जिंदगी का सफ़र प्रारंभ किया | शायद उनकी कठिन व विपरीत परिस्थितियों ने ही उन्हें दुसरे दुःख  दर्द का अहसास करना व खुश  रहना भी सिखाया ---

विगत वर्ष रो,हँस-गा लिया हमने,
भोग लिया वह कीर्तिमान है |
नव वर्ष के अंतर्मन में ,
नव उर्जा -नव तापमान है |

हमारी इस प्रथम व्यक्तिगत भेंट को यादगार बनाने हेतु उन्होंने अपनी एक पुस्तक " सोच ले तू  किधर जा रहा है " मुझे भेंट की | इसमें मिश्र जी की चुनिन्दा गज़लें संग्रहित हैं| उनकी ग़ज़लों को कई बार पढ़ा ,बार-बार पढ़ा |किस तरह वर्तमान हालत पर प्रहार करती हैं उनकी गज़लें ---
किसने लगाई आग  ,और किसका घर जला,
मेरे शहर के अमन पर ,किसका कहर चला |
दौलत की चाह में लोग क्या नहीं कर बैठते , नव धनाड्यों  तथा सियासतदानों के गठबंधन को बड़ी शालीनता से नंगा करते हुए गरीब के दर्द को उन्होंने अपनी ग़ज़लों में बखूबी  जिया है --
कल झुग्गियां जली थी ,हो गए कुछ फ़क़ीर,
कल रात ही बना था, एक आदमी अमीर |
मिश्र जी जनवादी कवि हैं | पेशे से वकील, तबियत से हरफनमौला ,और सहस के धनि रघुनाथ मिश्र जी से बस एक ही मुलाकात काफी है वह आपको उनका मुरीद बना देगी ...
कौन कहता है मज़ा जोखिम से डर जाने में है,
जिंदगी का अर्थ ही तूफां  से टकराने में है |
संस्कृति, समाज व सभ्यता जो इस मुल्क की विरासत है ,जिसमे भारतीयता तथा धर्म का सार समाया है, के संरक्षण व पोषण पर भी मिश्र जी का ध्यान बना रहता है | वह सचेत करते हैं...
सोच ले तू किधर जा रहा है,
एक अजूबी डगर जा रहा है|
किसका जादू हुआ है यूँ हावी,
तुझको मीठा जहर भा रहा है |
होता फौलाद है आदमी फिर
रेत सा क्यों बिखरा जा रहा है |
गरीब, बेसहारों का दर्द तथा दहशतगर्दों का जुल्म व अमीरों की ऐशों आराम ,फिजूलखर्ची उनके मन को आहात करती है --
कैसे आये हमको हँसी,जब तमाम रोते हैं,
थूकते हैं हम उन पर,जो आंसुओं को बोते हैं|
बच्चे कुछ तरसते हैं मिटटी के खिलौनों को,
ऐसे भी बच्चे यहाँ जो तारों के संग सोते हैं |
रघुनाथ मिश्र जी के दिल में गरीबों के प्रतिदर्द, समाज के लिए चिंतन,दह्र्म का आधार दर्शन, तथा मानवता के प्रति समर्पण विद्यमान है | वह विसंगतियों पर प्रहार करते हैं, नफरत को मिटने का व्यापार करते हैं और कह उठते हैं..
..
आओ हिल मिल प्यार करें
नफरत का उपचार करें
जीवन को जीवन रहने दें
उस पर न व्यापार करें |
मिश्र जी की प्रत्येक ग़ज़ल पर एक समीक्षा लिखी जा सकती है | उनकी शैली सरल और सीधे पाठक के दिल तक असर करने वाली है | आपकी गज़लें मात्र प्यार-मोहब्बत का दस्तावेज नहीं हैं अपितु जीवन की हकीकत और समाज का जीवन्त चित्रण हैं |
श्री रघुनाथ मिश्र जी के लिए मैं इतना ही कहना चाहूँगा कि यह वो शख्स है जिसके दिल में अथाह दर्द व प्यार का सागर भरा है..
दर्द उभरेगा दिल में, तो भी मुस्कराऊंगा ,
कोई अपना न मिला ,तो अपना सा बनाऊंगा|
करना मेरा इंतजार , मैं आऊंगा जरुर,
सारे जहाँ में प्यार बाँट कर आऊंगा |(डॉ अ कीर्तिवर्धन)

ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि वह स्वस्थ रहते हुए हमारा व समाज का मार्गदर्शन करते रहें |

डॉ अ कीर्तिवर्धन
08265821800



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