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Wednesday, December 12, 2012

मकान और घर

जिस दिन मकां ,घर में बदल जायेगा ,
सारे शहर का मिजाज बदल जायेगा |
जिस दिन चिराग गली में जल जायेगा,
सारे गाँव का अँधेरा छंट जाएगा |
आने दो रोशनी तालीम की मेरी बस्ती में,
बस्ती का भी अंदाज़  बदल जायेगा |
रहते हैं जो भाई चारे के साथ गरीबी में ,
खुदगर्जी का साया उन पर भी पड़ जायेगा |
कर दो मुक्त आसमाँ को ,बाजों से ,
परिंदों को नया गगन नजर आएगा |
भूखे को दो एक निवाला रोटी का ,
गुलर में भी उसे पकवान नजर आएगा |
दौलत की हबस का असर तो देखना ,
तन्हाई का दायरा "कीर्ति" बढ़ता जायेगा |
उड़ जाएगी नींद सियासतदानों की
जब आदमी मुकम्मल इंसान बन जायेगा |
डॉ अ कीर्तिवर्धन
8265821800

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