Pages

Followers

Sunday, January 27, 2013

kabr

कब्र

मरने पर मेरे मुझे , सुपुर्दे ख़ाक कर देना ,
मेरी कब्र न बनाना ,मुझे चैन से सोने देना ।

नहीं चाहता ख़लल , नींद में मेरी आये ,
ताउम्र उलझा रहा फ़िक्र में, मरकर तो शकुन आये ।

मरने पर किसी के ,जब फातिया पढ़ते हैं ,
चैन से सोने की , सब दुआ करते हैं ।

फिर क्यों कब्र किसी की ,  हम बनाते हैं ?
कब्र पर इंसान नहीं,बस उल्लू नजर आते हैं ।

टूटे हुए पत्तों का ढेर ,कब्र पर छा जाता है,
जानने को हाल कोई, कब्र तक नहीं आता है ।

मैं ज़िंदा तो दबा रहा ,फिक्रों  के बोझ से ,
मरने पर ना दबाना मुझे, पत्तों के बोझ से ।

पत्ते भी तनहा हैं , शाख से अपनी ,
सुपुर्दे ख़ाक कर देना ,उनको भी कहीं ।

चैन से सो जाएँ वो भी, तुम दुआ करना ,
उनके भी अमन की खातिर,फातिया पढ़ना ।

डॉ अ कीर्तिवर्धन
8265821800

No comments:

Post a Comment