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Monday, January 14, 2013

pahchaan nahi hoti

तूफां से सागर की पहचान नहीं होती ,
झील कितनी भी बड़ी हो ,सागर नाम नहीं होती ।

गर दुष्टों को सम्मान मिला करता जमाने में,
शराफत की राह आसान नहीं होती ।

बनता है कोई सागर सा,मन की गहराइयों से ,
टूटी तलवार की कोई मयान  नहीं होती ।

हीरे ,मोती, माणिक के सब हैं लुटेरे,
हर निगाह ज्ञान के मोती की कद्रदान नहीं होती ।

किसी-किसी पे बरसती है रहमत खुदा की,
बेईमानों की कीमत,उनकी जुबान नहीं होती ।

भागते हैं जो लोग फकत दौलत के पीछे ,
ईमानदारी  की बातें ,उनका ईमान नहीं होती ।

छुपा है खजाना बेहिसाब ,सागर की गहराइयों में ,
बिना उतरे गहराई में ,कुदरत मेहरबान नहीं होती ।

सोच कर मन्जर बर्बादी का,तूफां  से पहले,
मछुवारों की बस्ती ,  वीरान नहीं होती ।


मुश्किल में अक्सर ,भाग जाते हैं छोड़कर,
बुजदिलों की कोई आन-बान -शान नहीं होती ।

डॉ अ कीर्तिवर्धन
8265821800

2 comments:

  1. आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (16-01-13) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
    सूचनार्थ |

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  2. dhanyawad pradeep ji ,baar baar dhanyawad , aap mitron ka sneh yun hi bana rahe

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