झुकी नज़रों को तेरी, इकरार समझा था ,
खामोश लबों को मैं ,इसरार समझा था,
नहीं जानता था सबब इसके पीछे क्या था,
तेरे मुड़कर चले जाने को ,प्यार समझा था ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
8265821800
खामोश लबों को मैं ,इसरार समझा था,
नहीं जानता था सबब इसके पीछे क्या था,
तेरे मुड़कर चले जाने को ,प्यार समझा था ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
8265821800
बहुत सुन्दर जज़्बात....
ReplyDeleteबहुत प्यारी कविता.
अनु
dhanyawad anu, aabhari hun
Deletewahh...kya baat hai ...
ReplyDeletehttp://ehsaasmere.blogspot.in/