सन्नाटे की आवाज़ -----
खामोश!
मुझे कहते हैं
मेरे लब
और प्रेरित करते हैं
सुनने के लिए
वह आवाज़
जो कहीं नहीं है
यानी
सन्नाटे की आवाज़|
क्योंकि
एकल परिवारों मे
सुननी होगी
यही सन्नाटे की आवाज़
दिन,प्रतिदिन
लगातार।
और
जरुरी भी है यह
उस टूटन व घुटन से
बचने के लिए
जो दस्तक दे रही है
हर एकल परिवार की
चौखट पर|
डॉ अ कीर्तिवर्धन
8265821800
खामोश!
मुझे कहते हैं
मेरे लब
और प्रेरित करते हैं
सुनने के लिए
वह आवाज़
जो कहीं नहीं है
यानी
सन्नाटे की आवाज़|
क्योंकि
एकल परिवारों मे
सुननी होगी
यही सन्नाटे की आवाज़
दिन,प्रतिदिन
लगातार।
और
जरुरी भी है यह
उस टूटन व घुटन से
बचने के लिए
जो दस्तक दे रही है
हर एकल परिवार की
चौखट पर|
डॉ अ कीर्तिवर्धन
8265821800
वाह बहुत सुन्दर भाव हैं इस रचना के ...सुन्दर पंक्तियाँ बुनी है
ReplyDeletedhanyawad sanjay bhai
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