कभी सर दर्द ,पैर दर्द,पेट दर्द बताते हैं,
हमारे सानिध्य में आने से भी कतराते हैं ।
छू गया आँचल एक दिन ,किसी गैर का ,
तिरछी-तिरछी नज़रों से ,बिजलियाँ गिराते हैं ।
जल गया आसयाँ ,जल गया चिलमन मेरा ,
उनके व्यंग बाण ,मेरा वुजूद ही जलाते हैं ।
दीवाने हम उनके रूप के,मरते हैं हर अदा पर ,
प्यार भरी एक निगाह पर ,जान हम लुटाते हैं ।
जाने कब बरस जाएँ ,सावन की बदरिया ,
रात भर जागते हैं ,हम सो नहीं पाते हैं ।
एक बार कह दिया था ,तन्हा हमको छोड़ दो,
मरने और मारने की , धमकियां दे जाते हैं ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
8265821800
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