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Wednesday, February 6, 2013

pahchaan ho gaye hain

पहचान हो गए है  .....

गरीबी में रिश्ते,झरोखे से हो गए हैं ,
बाहर सख्त अन्दर से पोपले हो गए हैं ।

थे  संगी साथी जो मेरे ,अमीरी के दौर में ,
 निकलते नजरें छुपाके ,बेगाने हो गए हैं ।

कल ही देखा अजीब सा मंजर .शीशे के सामने ,
मेरे अपने चेहरे भी ,मुझसे अनजाने हो गए हैं ।

था जिनको नाज कलतक,मेरी क़ाबलियत पर ,
बात-बात में ताने सुनाने को ,तैयार हो गए हैं ।

जानता हूँ कल आयेगा ,फिर वक़्त मेरा ,
बिगड़े हुए हालात,दोस्तों की पहचान हो गए हैं ।

डॉ अ कीर्तिवर्धन
8265821800

 

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