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Sunday, February 10, 2013

rivaaz

रिवाज़  ....

रहते थे एक घर में ,परिवार एक साथ ,
अकेले रहने का, अब चल गया रिवाज ।

टूटने लगे हैं घर ,जबसे गली -गाँव में ,
बच्चों के मन से,बुजुर्गों का मिट गया लिहाज ।

दिवार खिंची आँगन में ,मन भी बँट गए ,
जब से अलग चूल्हे का, चल गया रिवाज ।

दीवारें क्या खिंची ,माँ-बाप बँट  गए ,
बताने  लगे हैं बच्चे ,अब खर्च का हिसाब ।

मुश्किल है आजकल ,बच्चों को डांटना ,
देने लगे हैं बच्चे , हर बात का जवाब ।

दिखते नहीं हैं बूढों के भी ,बाल अब सफ़ेद ,
लगाने लगे हैं जब से ,वो बालों में खिजाब ।

दौलत की हबस ने "कीर्ति" ,कैसा खेल खेला,
बदल गया है आजकल ,हर शख्स का मिजाज ।

डॉ अ कीर्तिवर्धन
8265821800

1 comment:

  1. आज के युग हर कोई अपना खिचड़ी अलग ही पकाना चाहता है,बहुत ही सुंदर प्रस्तुति.

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