वर्तमान माँ का दौर।।।।
वो दौर कुछ और था जब माँ की गोद था ,
सुनते ही आवाज़ वो दौड़ी चली आती थी ।
लग गई चोट यदि कहीं मेरे पाँव में ,
आंसू की धार माँ की आँख से आती थी ।
जागने पर मेरे रात में ,वो खुद जाग जाती थी ,
गीले में खुद सोती ,मुझे सूखे में सुलाती थी ।
आज के दौर की यारों,बात कुछ और है ,
माँ के लिए मैं नहीं ,ख़ास कुछ और है ।
उठाती नहीं माँ आजकल , गोद में बच्चा ,
कपडे खराब हो जायेंगे,यह उसकी सोच है ।
तडफता है बच्चा गर दर्द और चोट से कहीं,
भेजती है डॉक्टर के,प्यार से हाथ रखती नहीं।
लगता है डर उसे छुआछुत और संक्रमण का ,
छोड़ती नहीं देखभाल को ,नौकरों की कमी ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
8265821800
वो दौर कुछ और था जब माँ की गोद था ,
सुनते ही आवाज़ वो दौड़ी चली आती थी ।
लग गई चोट यदि कहीं मेरे पाँव में ,
आंसू की धार माँ की आँख से आती थी ।
जागने पर मेरे रात में ,वो खुद जाग जाती थी ,
गीले में खुद सोती ,मुझे सूखे में सुलाती थी ।
आज के दौर की यारों,बात कुछ और है ,
माँ के लिए मैं नहीं ,ख़ास कुछ और है ।
उठाती नहीं माँ आजकल , गोद में बच्चा ,
कपडे खराब हो जायेंगे,यह उसकी सोच है ।
तडफता है बच्चा गर दर्द और चोट से कहीं,
भेजती है डॉक्टर के,प्यार से हाथ रखती नहीं।
लगता है डर उसे छुआछुत और संक्रमण का ,
छोड़ती नहीं देखभाल को ,नौकरों की कमी ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
8265821800
No comments:
Post a Comment