नारी अस्तित्व के
लिए बुनियादी पहलू है कन्या भ्रूण का होना , बचे रहना । हमारी संस्कृति
में नारी सदैव ही पूजनीय व वन्दनीय रही है । छोटी बालिकाओं को देवी के समान
पूजना ,नारी के प्रति हमारे दायित्व का बोध कराता है । फिर भ्रूण ह्त्या
की कल्पना कैसे की जा सकती है ? इस बात को सिरे से ख़ारिज तो नहीं किया जा
सकता कि कन्या भ्रूण हत्याएं नहीं होती होंगी मगर समाज में निरंतरता के साथ
किया जा रहा प्रचार भारतीय समाज को कन्या भ्रूण की शत प्रतिशत ह्त्या का
भयावह रूप दिखाता प्रतीत होता है और हमारे चरित्र व चिंतन को दुनिया के
समक्ष बौना अवश्य बना देता है ।
क्या वास्तव में देश में भ्रूण ह्त्या का यह भयावह रूप है ? इस बात को जाने के लिए हमें थोड़ा निम्न तथ्यों पर गौर करना होगा :-----
अर्थशास्त्रियों के मुताबिक भारत की आबादी का 40% लोग प्रतिदिन 20/ से 25/-रुपये कमाता है, 20% आबादी की आय 100/- प्रतिदिन तक है ,20% जनसंख्या निम्न माध्यम है जिसकी मासिक आय 8000/- से 10000/- तक है । 10% लोग वह हैं जिनकी आय 25000 से 30000/- प्रतिमाह तक है ,इसके अलावा बचे 10% लोग उच्च मध्य व उच्च आय से सम्बंधित हैं ।
प्रथम 80% लोग जनसंख्या वाले घरों में तीन -चार या पांच बच्चों का होना आम बात है और उसमे भी कन्याओं का प्रतिशत किसी भी प्रकार कम नहीं है । अक्सर यह भी देखने में आता है कि एक ही परिवार में 3-4 लड़कियां हैं लेकिन वहां लडके की चाह के बावजूद कन्या भ्रूण की ह्त्या का विचार ही नहीं है, अपितु इश्वर की कृपा ,इच्छा मानकर स्वीकार किया जाता है । अब बाकी 20% जनसंख्या के परिवारों का आकलन करें तो वहां एक-दो बच्चों की मानसिकता ही पायी जाती है । इससे स्पष्ट है कि केवल उच्च 20% लोगों की मानसिकता ही न्यूनतम परिवार की है ।
अब भ्रूण ह्त्या का दूसरा रुख भी विचारनीय है । भ्रूण ह्त्या के लिए आधुनिक तकनीक यानी अल्ट्रा साउंड का प्रयोग आवश्यक है ,जिसका न्यूनतम खर्च भ्रूण परीक्षण के लिए 8000/- से 10000/- रुपये तक है और यह सुविधा अभी तक भी दूर देहात ,गाँव में उपलब्ध नहीं है , फिर सफाई का खर्च यानि भ्रूण ह्त्या जिस पर भी 10000/- से 25000/- तक है। तब बताएं कि देश की 80% जनता जो दो वक़्त की रोटी के लिए भी संघर्ष रत है ,भ्रूण ह्त्या की बात कैसे सोच सकती है ? हाँ 20% लोगों की बात , उनकी मानसिकता पर कोई प्रश्न चिन्ह मैं नहीं लगा रहा हूँ , वह स्वयं विचार करें और अपना मूल्यांकन करें ।
भ्रूण ह्त्या के सम्बन्ध में अनेक सर्वे किये जाते रहे हैं जिनमे अधिकतर प्रायोजित ही होते हैं, मगर एक सर्वे ने नए तथ्यों को भी रेखांकित किया है । उसके मुताबिक " अपने उज्जवल भविष्य की चाह में वर्तमान पीढ़ी में देर से शादी का प्रचलन बढ़ा है , उन्हें बिना शादी संग रहना (लिव इन रिलेशनशिप ) पसंद है,मगर शादी करना नहीं । वह दायित्वों के बंधन से आज़ादी चाहते हैं । बिन विवाह संग रहने के दौरान अथवा देर से शादी के बावजूद आज की युवती गर्भ धारण से बचना चाहती है । अगर किसी कारण से वह गर्भवती हो भी गई तो बिना लिंग जांच कराये गर्भपात कराने में भी उसे गुरेज नहीं है । तो यहाँ भ्रूण ह्त्या तो है मगर कन्या भ्रूण ह्त्या जैसी कोई बात नहीं ।
क्या वास्तव में देश में भ्रूण ह्त्या का यह भयावह रूप है ? इस बात को जाने के लिए हमें थोड़ा निम्न तथ्यों पर गौर करना होगा :-----
अर्थशास्त्रियों के मुताबिक भारत की आबादी का 40% लोग प्रतिदिन 20/ से 25/-रुपये कमाता है, 20% आबादी की आय 100/- प्रतिदिन तक है ,20% जनसंख्या निम्न माध्यम है जिसकी मासिक आय 8000/- से 10000/- तक है । 10% लोग वह हैं जिनकी आय 25000 से 30000/- प्रतिमाह तक है ,इसके अलावा बचे 10% लोग उच्च मध्य व उच्च आय से सम्बंधित हैं ।
प्रथम 80% लोग जनसंख्या वाले घरों में तीन -चार या पांच बच्चों का होना आम बात है और उसमे भी कन्याओं का प्रतिशत किसी भी प्रकार कम नहीं है । अक्सर यह भी देखने में आता है कि एक ही परिवार में 3-4 लड़कियां हैं लेकिन वहां लडके की चाह के बावजूद कन्या भ्रूण की ह्त्या का विचार ही नहीं है, अपितु इश्वर की कृपा ,इच्छा मानकर स्वीकार किया जाता है । अब बाकी 20% जनसंख्या के परिवारों का आकलन करें तो वहां एक-दो बच्चों की मानसिकता ही पायी जाती है । इससे स्पष्ट है कि केवल उच्च 20% लोगों की मानसिकता ही न्यूनतम परिवार की है ।
अब भ्रूण ह्त्या का दूसरा रुख भी विचारनीय है । भ्रूण ह्त्या के लिए आधुनिक तकनीक यानी अल्ट्रा साउंड का प्रयोग आवश्यक है ,जिसका न्यूनतम खर्च भ्रूण परीक्षण के लिए 8000/- से 10000/- रुपये तक है और यह सुविधा अभी तक भी दूर देहात ,गाँव में उपलब्ध नहीं है , फिर सफाई का खर्च यानि भ्रूण ह्त्या जिस पर भी 10000/- से 25000/- तक है। तब बताएं कि देश की 80% जनता जो दो वक़्त की रोटी के लिए भी संघर्ष रत है ,भ्रूण ह्त्या की बात कैसे सोच सकती है ? हाँ 20% लोगों की बात , उनकी मानसिकता पर कोई प्रश्न चिन्ह मैं नहीं लगा रहा हूँ , वह स्वयं विचार करें और अपना मूल्यांकन करें ।
भ्रूण ह्त्या के सम्बन्ध में अनेक सर्वे किये जाते रहे हैं जिनमे अधिकतर प्रायोजित ही होते हैं, मगर एक सर्वे ने नए तथ्यों को भी रेखांकित किया है । उसके मुताबिक " अपने उज्जवल भविष्य की चाह में वर्तमान पीढ़ी में देर से शादी का प्रचलन बढ़ा है , उन्हें बिना शादी संग रहना (लिव इन रिलेशनशिप ) पसंद है,मगर शादी करना नहीं । वह दायित्वों के बंधन से आज़ादी चाहते हैं । बिन विवाह संग रहने के दौरान अथवा देर से शादी के बावजूद आज की युवती गर्भ धारण से बचना चाहती है । अगर किसी कारण से वह गर्भवती हो भी गई तो बिना लिंग जांच कराये गर्भपात कराने में भी उसे गुरेज नहीं है । तो यहाँ भ्रूण ह्त्या तो है मगर कन्या भ्रूण ह्त्या जैसी कोई बात नहीं ।
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