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Sunday, March 3, 2013

moti ban jaaogi

सागर में उतर कर ऐ नदिया! क्या पाओगी
मीठा पानी है तुम्हारा ,खारी बन जाओगी ।

नहीं बुझा सकोगी प्यास ,किसी प्यासे की ,
अपनी ही घुटन में घुट कर मर जाओगी ।

तुम किसी की बनना ,ना बनना,निर्भर तुम पर ,
नफरत दिल में उगाओगी ,खुद जल  जाओगी ।

बदरिया बनकर बरसो,  जहां भी चाहो तुम ,
बूँद बन सीप में गिरोगी तो मोती बन जाओगी ।

डॉ अ कीर्तिवर्धन
8265821800

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