जहाँ रुखी रोटी खाकर भी हंसता बचपन है ,
परिवार जनों की सेवा,स्त्री का गौरव बढ़ता है ।
जहाँ सबके सुखदुख एक दूजे के होते हैं
जहाँ भूखे रहकर भी संस्कृति को ढोते हैं ।
टूटी झोपड़ ,आम की छैयाँ ,धरती बिस्तर ,
उससे अच्छा कहाँ सुहाना मौसम होता है ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
8265821800
परिवार जनों की सेवा,स्त्री का गौरव बढ़ता है ।
जहाँ सबके सुखदुख एक दूजे के होते हैं
जहाँ भूखे रहकर भी संस्कृति को ढोते हैं ।
टूटी झोपड़ ,आम की छैयाँ ,धरती बिस्तर ,
उससे अच्छा कहाँ सुहाना मौसम होता है ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
8265821800
No comments:
Post a Comment