अमावस्या के लीलने से ,चाँद नहीं मिटता ,
एक रोज का अन्धेरा , फिर से है चमकता ।
कौन मिटा पाया सूरज की भी अहमियत
ढल कर भी दुनिया को आराम करा देता ।
वादा है मेरा दोस्त , यह तुमको बताता हूँ ,
असआरों से अपने ,दुनिया को जगाता हूँ ।
अच्छे को बुरा कहना दुनिया की रिवायत है ,
मैं कातिल को भी , इंसान बना देता हूँ ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
एक रोज का अन्धेरा , फिर से है चमकता ।
कौन मिटा पाया सूरज की भी अहमियत
ढल कर भी दुनिया को आराम करा देता ।
वादा है मेरा दोस्त , यह तुमको बताता हूँ ,
असआरों से अपने ,दुनिया को जगाता हूँ ।
अच्छे को बुरा कहना दुनिया की रिवायत है ,
मैं कातिल को भी , इंसान बना देता हूँ ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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