कातिलों का पड़ोस
दिन महीने कुछ इस तरह गुजरने लगे हैं ,
हम खुद के साए से भी डरने लगे हैं ।
कुसूर अपना हम क्या बयाँ करें ,
हम कातिलों के पड़ोस में रहने लगे हैं ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
दिन महीने कुछ इस तरह गुजरने लगे हैं ,
हम खुद के साए से भी डरने लगे हैं ।
कुसूर अपना हम क्या बयाँ करें ,
हम कातिलों के पड़ोस में रहने लगे हैं ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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