कर्मो का लेखा यहाँ , करता अपना काम ,
वह तो सबको दे रहा , सबकुछ ही सामान ।
रुखी रोटी खाकर भी , निर्धन करे आराम ,
मखमल के गद्दों पर भी , करवट लें श्रीमान ।
धन दौलत के ढेर हैं ,पर रोटी नहीं नसीब ,
पैसे वाला रहे दुखी , और भूखा रहे गरीब ।
करवट लें श्रीमान , रात भर नींद ना आती ,
टूटी खटिया गरीबी की ,आज याद है आती ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
वह तो सबको दे रहा , सबकुछ ही सामान ।
रुखी रोटी खाकर भी , निर्धन करे आराम ,
मखमल के गद्दों पर भी , करवट लें श्रीमान ।
धन दौलत के ढेर हैं ,पर रोटी नहीं नसीब ,
पैसे वाला रहे दुखी , और भूखा रहे गरीब ।
करवट लें श्रीमान , रात भर नींद ना आती ,
टूटी खटिया गरीबी की ,आज याद है आती ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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