बढ़ती विकलांगता के भयावह होते कारण | ||||||
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देश में आबादी बढ़ने के साथ विकलांगों की संख्या भी बढ़ रही है।
विनोद कुमार मिश्र
यह स्थिति समाज के विकास में बड़ी बाधा है। वैसे विकलांगता के कुछ कारणों का प्रभाव घटा है पर चिंता का विषय यह है कि अनेक का बढ़ा भी है। नेत्रहीनता में हालांकि कमी आई है। देश में पहले नेत्रहीनता का प्रतिशत 1.4 था जो घटकर 0.3 रह गया है। पर जो लोग नेत्रहीन या अल्प दृष्टिवान हो चुके हैं उनके लिए शिक्षा, रोजगार आदि की दिशा में और अधिकाधिक प्रयास करने की आवश्यकता है। इसी तरह कुष्ठ रोग की उत्पत्ति रोकने व इसके निवारण के प्रयासों में भी सफलता मिली है। देश के 28 राज्यों में दस हजार आबादी पर एक से कम कुष्ठ रोगियों की संख्या का लक्ष्य प्राप्त कर लिया गया है पर सात राज्यों जिनमें बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल जैसे बड़े राज्य भी शामिल हैं में अभी हम लक्ष्य से पीछे हैं।
आयोडीन की कमी विकलांगता का बड़ा कारण है। इसे आयोडीनयुक्त लवण की आपूर्ति से ही मिटाया जा सकता है पर प्रतिबंध के बावजूद आयोडीनरहित नमक धड़ल्ले से बिकता दिख रहा है। बधिरता व श्रवण बाधिता भी विकलांगता का एक प्रमुख अंग है। लेकिन तमाम उपायों के बावजूद इसके निवारण के प्रयासों में तेजी नहीं आ पाई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 6.3 करोड़ लोग अल्प से पूर्ण श्रवण बाधिता का शिकार हैं। इसके कारण जहां उन्हें व्यक्तिगत कष्ट सहन करना पड़ता है वहीं वे आर्थिक रूप से उपयोगी कार्य नहीं कर पाते हैं आैर व्यक्तिगत आैर समाज दोनों का नुकसान होता है।
कुपोषण देश की विकराल समस्या है और फिलहाल इसके निवारण के कोई आसार नहीं आ रहे है। देश के गोदामों में अनाज सड़ रहा है पर करोड़ों बच्चों को दो जून की रोटी नहीं मिल पा रही है। कुपोषण सभी प्रकार की विकलांगताओं को जन्म देता है। पोलियों किसी समय विकलांगता का प्रमुख कारण था। पूरे विश्व में अब यह उतार पर है। भारत में भी इसके खिलाफ सघन अभियान चलाया गया जा रहा है पर उत्तर प्रदेश व बिहार इससे मुक्त नहीं हो पाए हैं। हालांकि समाज के एक वर्ग में पोलियो की खुराक के संबंध में जो भ्रांति थी वह भी लगभग मिट चुकी है पर बड़ी आबादी व साफ-सफाई का अभाव इससे मुक्ति में अब भी बाधक हैं। असुरक्षित प्रसव आज भी देश में विकलांग बच्चों के जन्म का बड़ा कारण है। बदलती जीवन शैली, खानपान, मोटापा, शारीरिक श्रम का अभाव समृद्ध परिवारों में विकलांगता का कारण बन रहा है। मंदबुद्धि, सेरेब्राल पाल्सी से पीडि़त बच्चों की संख्या बढ़ रही है।
मुस्लिम समाज में विकलांगता के कारण व इसका प्रभाव अधिक देखा जा रहा है। अशिक्षा, गरीबी, पर्दाप्रथा व नजदीकी रिश्तों में विवाह इसके प्रमुख कारण हैं। गरीबी व अशिक्षा के कारण बीमारियां बढ़ती हैं और उनका उचित उपचार नहीं हो पाता है। फलत: विकलांगता का उदय होता है जो गरीबी व अशिक्षा को बेतहाशा बढ़ा देती है। नजदीकी रिश्तों में विवाह अनुवांशिक रोगों को जन्म देते हैं। जिनका उपचार वर्तमान चिकित्सा व्यवस्था के लिए अब भी दुष्कर है।
बुद्धिजीवियों की कुंठा भी विकलांगता बढ़ाने का एक कारण माना जाना चाहिए। कश्मीर की आजादी व माओवादियों की हिंसा का समर्थन कर चर्चा में आने वाली एक लेखिका तथा अनेक बुद्धिजीवियों ने विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर उनका समर्थन कर डाला। पर ये लोग भूल जाते हैं कि आतंकवाद के कारण उभर रही विकलांगता में वृद्धि किस कदर भयावह है। जब एक हट्टा-कट्टा सैनिक विकलांग हो जाता है तो उस पर व उसके परिवार पर क्या बीतती है। जहां उपरोक्त हिंसा में सैनिक व सामान्य आबादी तेजी से विकलांग हो रही है वहीं विकलांगों के कल्याण संबंधी योजनाओं का क्रियान्वयन भी बाधित हो रहा है।
कश्मीर में आज भी अन्य राज्यों की तुलना में अधिक आजादी है। भारत की संसद द्वारा पारित कानून कश्मीर में ज्यों के त्यों लागू नहीं होते हैं। विकलांगता संबंधी अनेक कानून जैसे गंभीर व बहु विकलांगता से पीडि़त लोगों के लिए नेशनल ट्रस्ट कानून भी इसका शिकार है। हाल में जम्मू स्थित एक संस्था 'सहयोग' के पदाधिकारियों डा. अश्विनी व ललित ने बताया कि जम्मू कश्मीर में विकलांगों की स्थिति भयानक रूप लेती जा रहा है। माओवादी हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में तो पूरा प्रशासन ही विकलांग हो चुका है। ऐसे में वहां की स्थिति का आकलन असंभव है।
देखें तो विकलांगों के लिए 1995 में बना विकलांग कानून ही जन्मजात विकलांगता का शिकार है। इसकी हर धारा में वर्णित है कि सरकार अपनी आर्थिक स्थिति के अनुरूप योजना बनाएगी। कॉमनवेल्थ के आयोजन में समाज कल्याण विभागों की बची-खुची राशि भी लगा दी गई। इस कानून में कहीं भी यह नहीं लिखा कि क्रियान्वयन की जिम्मेदारी किसी होगी। क्या कथित बुद्धिजीवी इस दिशा में भी अपनी विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग करेंगे।
यह स्थिति समाज के विकास में बड़ी बाधा है। वैसे विकलांगता के कुछ कारणों का प्रभाव घटा है पर चिंता का विषय यह है कि अनेक का बढ़ा भी है। नेत्रहीनता में हालांकि कमी आई है। देश में पहले नेत्रहीनता का प्रतिशत 1.4 था जो घटकर 0.3 रह गया है। पर जो लोग नेत्रहीन या अल्प दृष्टिवान हो चुके हैं उनके लिए शिक्षा, रोजगार आदि की दिशा में और अधिकाधिक प्रयास करने की आवश्यकता है। इसी तरह कुष्ठ रोग की उत्पत्ति रोकने व इसके निवारण के प्रयासों में भी सफलता मिली है। देश के 28 राज्यों में दस हजार आबादी पर एक से कम कुष्ठ रोगियों की संख्या का लक्ष्य प्राप्त कर लिया गया है पर सात राज्यों जिनमें बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल जैसे बड़े राज्य भी शामिल हैं में अभी हम लक्ष्य से पीछे हैं।
आयोडीन की कमी विकलांगता का बड़ा कारण है। इसे आयोडीनयुक्त लवण की आपूर्ति से ही मिटाया जा सकता है पर प्रतिबंध के बावजूद आयोडीनरहित नमक धड़ल्ले से बिकता दिख रहा है। बधिरता व श्रवण बाधिता भी विकलांगता का एक प्रमुख अंग है। लेकिन तमाम उपायों के बावजूद इसके निवारण के प्रयासों में तेजी नहीं आ पाई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 6.3 करोड़ लोग अल्प से पूर्ण श्रवण बाधिता का शिकार हैं। इसके कारण जहां उन्हें व्यक्तिगत कष्ट सहन करना पड़ता है वहीं वे आर्थिक रूप से उपयोगी कार्य नहीं कर पाते हैं आैर व्यक्तिगत आैर समाज दोनों का नुकसान होता है।
कुपोषण देश की विकराल समस्या है और फिलहाल इसके निवारण के कोई आसार नहीं आ रहे है। देश के गोदामों में अनाज सड़ रहा है पर करोड़ों बच्चों को दो जून की रोटी नहीं मिल पा रही है। कुपोषण सभी प्रकार की विकलांगताओं को जन्म देता है। पोलियों किसी समय विकलांगता का प्रमुख कारण था। पूरे विश्व में अब यह उतार पर है। भारत में भी इसके खिलाफ सघन अभियान चलाया गया जा रहा है पर उत्तर प्रदेश व बिहार इससे मुक्त नहीं हो पाए हैं। हालांकि समाज के एक वर्ग में पोलियो की खुराक के संबंध में जो भ्रांति थी वह भी लगभग मिट चुकी है पर बड़ी आबादी व साफ-सफाई का अभाव इससे मुक्ति में अब भी बाधक हैं। असुरक्षित प्रसव आज भी देश में विकलांग बच्चों के जन्म का बड़ा कारण है। बदलती जीवन शैली, खानपान, मोटापा, शारीरिक श्रम का अभाव समृद्ध परिवारों में विकलांगता का कारण बन रहा है। मंदबुद्धि, सेरेब्राल पाल्सी से पीडि़त बच्चों की संख्या बढ़ रही है।
मुस्लिम समाज में विकलांगता के कारण व इसका प्रभाव अधिक देखा जा रहा है। अशिक्षा, गरीबी, पर्दाप्रथा व नजदीकी रिश्तों में विवाह इसके प्रमुख कारण हैं। गरीबी व अशिक्षा के कारण बीमारियां बढ़ती हैं और उनका उचित उपचार नहीं हो पाता है। फलत: विकलांगता का उदय होता है जो गरीबी व अशिक्षा को बेतहाशा बढ़ा देती है। नजदीकी रिश्तों में विवाह अनुवांशिक रोगों को जन्म देते हैं। जिनका उपचार वर्तमान चिकित्सा व्यवस्था के लिए अब भी दुष्कर है।
बुद्धिजीवियों की कुंठा भी विकलांगता बढ़ाने का एक कारण माना जाना चाहिए। कश्मीर की आजादी व माओवादियों की हिंसा का समर्थन कर चर्चा में आने वाली एक लेखिका तथा अनेक बुद्धिजीवियों ने विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर उनका समर्थन कर डाला। पर ये लोग भूल जाते हैं कि आतंकवाद के कारण उभर रही विकलांगता में वृद्धि किस कदर भयावह है। जब एक हट्टा-कट्टा सैनिक विकलांग हो जाता है तो उस पर व उसके परिवार पर क्या बीतती है। जहां उपरोक्त हिंसा में सैनिक व सामान्य आबादी तेजी से विकलांग हो रही है वहीं विकलांगों के कल्याण संबंधी योजनाओं का क्रियान्वयन भी बाधित हो रहा है।
कश्मीर में आज भी अन्य राज्यों की तुलना में अधिक आजादी है। भारत की संसद द्वारा पारित कानून कश्मीर में ज्यों के त्यों लागू नहीं होते हैं। विकलांगता संबंधी अनेक कानून जैसे गंभीर व बहु विकलांगता से पीडि़त लोगों के लिए नेशनल ट्रस्ट कानून भी इसका शिकार है। हाल में जम्मू स्थित एक संस्था 'सहयोग' के पदाधिकारियों डा. अश्विनी व ललित ने बताया कि जम्मू कश्मीर में विकलांगों की स्थिति भयानक रूप लेती जा रहा है। माओवादी हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में तो पूरा प्रशासन ही विकलांग हो चुका है। ऐसे में वहां की स्थिति का आकलन असंभव है।
देखें तो विकलांगों के लिए 1995 में बना विकलांग कानून ही जन्मजात विकलांगता का शिकार है। इसकी हर धारा में वर्णित है कि सरकार अपनी आर्थिक स्थिति के अनुरूप योजना बनाएगी। कॉमनवेल्थ के आयोजन में समाज कल्याण विभागों की बची-खुची राशि भी लगा दी गई। इस कानून में कहीं भी यह नहीं लिखा कि क्रियान्वयन की जिम्मेदारी किसी होगी। क्या कथित बुद्धिजीवी इस दिशा में भी अपनी विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग करेंगे।
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