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Wednesday, July 24, 2013

daya nahi

दया नहीं, समानता और अवसर के हकदार हैं विकलांग लोग

 

3 दिसंबर अंतरराष्टीय विकलांग दिवस पर विशेष
एजेंसी | नई दिल्ली, , दिसंबर 2, 2011 12:00 
 

  

   
 मानसिक अथवा शारीरिक रूप से किसी बाध्यता के शिकार लोग परिवार और समाज में उपेक्षा या दया नहीं, बल्कि कुछ अधिक प्यार और अपनेपन के हकदार हाते हैं ताकि वह अपनी इस कमी पर विजय पाकर अपनी क्षमताओं के अनुरूप बेहतर ढंग से जिंदगी गुजर कर सकें.
पर हमारे समाज की यह विडंबना है कि इन लोगों को दरअसल उनका जायज हक ही नहीं मिल पाता और जीवन में कदम कदम पर इन्हें तमाम मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इन लोगों को समान अवसर उपलब्ध कराने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने तीन दिसंबर का दिन विकलांगों के नाम किया है. 
    
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र के प्रोफेसर आनंद कुमार ने बताया विकलांगता को हम मोटे तौर पर दो भागों में विभाजित करते हैं. पहला शारीरिक विकलांगता और दूसरा मानसिक रूप से कमजोर. शारीरिक विकलांग को जहां समान अवसर और समाज में कुछ विशेष सुविधा दिये जाने की जरूरत है वहीं मानसिक रूप से कमजोर बच्चों के लिए सरकार से अनुदान मिलना चाहिए.
   
 उन्होंने बताया मानसिक रूप से कमजोर बच्चों के विकास के मामले में पश्चिम से सबक लेने की जरूरत है. हमारे यहां केवल पांच प्रतिशत लोग ऐसे हैं जो अपने मानसिक रूप से बाध्य बच्चों की देखभाल का खर्च खुद उठा सकते हैं और बाकी की देखभाल के लिए सरकार को विशेष व्यवस्था करनी चाहिए.
उन्होंने कहा कि विकलांगता की बात होने पर अक्सर मानसिक विकलांगता को अनदेखा कर दिया जाता, जबकि हमारे समाज के इन लोगों को विशेष देखभाल की जरूरत है. राजधानी के छावनी इलाके में दिल्ली कैंटोनेमेंट बोर्ड के कृपा स्कूल की प्रिंसिपल नीलम शौरी ने बताया दिमागी तौर पर सामान्य बच्चों से अलग व्यवहार करने वाले बच्चों को स्वावलंबी बनाना बहुत बड़ी चुनौती है.

     
दिमागी रूप से कमजोर बच्चों के स्कूल संचालिका नीलम ने बताया ये बच्चे समाज के साथ कदम से कदम मिला कर चल सकें इसके लिए कृपा जैसे और स्कूल खोलने की जरूरत है. जिन परिवारों से यह बच्चे आते हैं उनको संबल दिया जाना चाहिए और यह जिम्मेदारी स्कूल ही उठा सकते हैं. विकलांगता के मुख्यत: तीन प्रकार माने जाते हैं. अस्थि विकलांग, दृष्टि बाध्यता और शारीरिक विकलांग, लेकिन मानसिक रूप से कमजोर लोगों को विकलांग की श्रेणी में शामिल नहीं किया जाता है और ऐसे में उन्हें तीन प्रतिशत सरकारी आरक्षण का लाभ नहीं मिल पाता है. 
     
दिल्ली विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान के प्रोफेसर एनके चड्ढा ने बताया मानसिक रूप से कमजोर बच्चों को प्रोत्साहन दिए जाने की जरूरत है. अगर ऐसा किया जाए तो वह बहुत अच्छा कर सकते हैं. अन्यथा ऐसे बच्चे अन्तर्मुखी स्वभाव के हो जाते हैं. उन्होंने बताया आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के अलावा विकलांग बच्चों में आत्मविश्वास बढ़ाने की जरूरत है क्योंकि ऐसे बच्चों में आत्मविश्वास की काफी कमी होती है. ऐसे बच्चों को हम सामान्य बच्चों से अलग-थलग कर देते हैं, जो नहीं करना चाहिए.
    
प्रोफेसर चड्ढ़ा ने कहा कि ऐसे में शिक्षकों को जिम्मेदारी लेनी पड़ेगी कि उन्हें बोलने के लिए उत्साहित करें और उनके लिए बेचारे या दया जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं करें. हमारे हिन्दी सिनेमा जगत भी विकलांगों को लेकर काफी सजग रहा है. बॉलीवुड में विकलांगों की पृष्ठभूमि पर कई फिल्में बनी हैं. मानसिक रूप से कमजोर बच्चों पर शाहरूख खान अभिनीत माई नेम इज खान, रितिक रौशन अभिनीत कोई मिल गया और अजय देवगन के अभिनय से सजी फिल्म मैं ऐसा ही हूं आ चुकी है. 

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