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Saturday, July 20, 2013

tum jhankati rahi

तुम झांकती रही खिड़की के दरमियां ,दीदार की खातिर ,
एक बार नजरें झुकाकार अपने दिल में देखा तो होता ,
मैं तो कल भी आया था तेरे ख़्वाबों में ,ऐ जानम ,
नींद के आगोश में तेरी चूड़ी जब खनखनायी थी ।

डॉ अ कीर्तिवर्धन

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