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Tuesday, July 9, 2013

vasudhaiv kutumb......rashtra dharm

राष्ट्र धर्म .....?

वसुधैव कुटुंब का सार हमने जाना है ,
सीमाओं का बंधन हमने नहीं माना है ।
करते हैं घुसपैठ जो अपने देश में ,बस
भाई का भाई के घर आना जाना है ।

लूट खसौट ,भ्रष्टाचार से मत घबराओ ,
ताकतवर भाई का राग सुहाना है ।
घर के मुखिया हमसे कहते शांत रहो ,
घुट घुट कर कब तक हमको रहना है ।

अपनी संताने अब बड़ी हो रही हैं ,
भाई की हकीकत से रूबरू हो रही हैं ।
आज विरोध का स्वर लिए खड़े हैं,
अत्याचार किसी का अब नहीं सहना है ।

खींची थी दीवार ,मुल्क जब बांटे थे ,
टूट गए सब रिश्ते नाते जो साझे थे ।
क्यों करते घुसपैठ यहाँ कोई बतला दे,
हस्तक्षेप किसी का हमको नहीं सहना है ।

थोड़ा सा मान बचा है अभी दिलों में ,
बुजुर्गों का सम्मान बचा है घर घर में ।
ऐसा ना हो सब ध्वस्त हो जाए पल में ,
बच्चों का अब ऐसा ही कहना है ।

ताऊ चाचा, बाबा,सब सावधान हो जाओ ,
लूट खसोट,भेदभाव का खेल बंद कराओ ।
करते हैं सम्मान आपका ,अपनी संस्कृति है ,
पर दुष्टों का नाश ,भगवान् कृष्ण का कहना है ।

तुम जो घर के मुखिया बने हुए हो ,
भ्रष्टाचार के प्रश्रय दाता  बने हुए हो ,
भीष्म पितामह बन सत्ता से निष्ठा कहते ,
अर्जुन के बाणों से तुमको भी मरना है ।

खेल रहे थे खेल अभी तक हम मर्यादा में ,
सम्मान कर रहे थे गुरुजनों का रणक्षेत्र में ।
गुरुजनों की निष्ठा भी अब स्वार्थ लिप्त है ,
उठो धनुर्धर ,उनका भी तो वध करना है ।

कौन है अपना ,कौन पराया ,मत विचार करो ,
सत्य ,निष्ठा और धर्म का प्रचार करो ।
जातिवाद ,क्षेत्रवाद ,भ्रष्टाचार के जो ,संरक्षक
उठो भीम उनका भी मद भंजन करना है ।

डॉ अ कीर्तिवर्धन

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