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Thursday, August 8, 2013

mahabharat kaa kaal

कुरुक्षेत्र युद्ध कौरवों और पाण्डवों के मध्य कुरु साम्राज्य के सिंहासन की प्राप्ति के लिए लड़ा गया था। महाभारत के अनुसार इस युद्ध में भारत के प्रायः सभी जनपदों ने भाग लिया था। महाभारत व अन्य वैदिक साहित्यों के अनुसार यह प्राचीन भारत में वैदिक काल के इतिहास का सबसे बड़ा युद्ध था। [1] इस युद्ध में लाखों क्षत्रिय योद्धा मारे गये जिसके परिणामस्वरूप वैदिक संस्कृति तथा सभ्यता का पतन हो गया था। इस युद्ध में सम्पूर्ण भारतवर्ष के राजाओं के अतिरिक्त बहुत से अन्य देशों के क्षत्रिय वीरों ने भी भाग लिया और सब के सब वीर गति को प्राप्त हो गये। [2] इस युद्ध के परिणामस्वरुप भारत में ज्ञान और विज्ञान दोनों के साथ-साथ वीर क्षत्रियों का अभाव हो गया। एक तरह से वैदिक संस्कृति और सभ्यता जो विकास के चरम पर थी उसका एकाएक विनाश हो गया। प्राचीन भारत की स्वर्णिम वैदिक सभ्यता इस युद्ध की समाप्ति के साथ ही समाप्त हो गयी। इस महान् युद्ध का उस समय के महान्ऋषि और दार्शनिक भगवान वेदव्यास ने अपने महाकाव्य महाभारत में वर्णन किया, जिसे सहस्राब्दियों तक सम्पूर्ण भारतवर्ष में गाकर एवं सुनकर याद रखा गया। [3]
महाभारत में मुख्यतः चंद्रवंशियों के दो परिवार कौरव और पाण्डव के बीच हुए युद्ध का वृत्तांत है। १०० कौरवों और पाँच पाण्डवों के बीच कुरु साम्राज्य की भूमि के लिए जो संघर्ष चला उससे अंतत: महाभारत युद्ध का सृजन हुआ। उक्त युद्ध को हरियाणा में स्थित कुरुक्षेत्र के आसपास हुआ माना जाता है। इस युद्ध में पाण्डव विजयी हुए थे। [1] महाभारत में इस युद्ध को धर्मयुद्ध कहा गया है, क्योंकि यह सत्य और न्याय के लिए लड़ा जाने वाला युद्ध था। [2]महाभारत काल से जुड़े कई अवशेष दिल्ली में पुराना किला में मिले हैं। पुराना किला को पाण्डवों का किला भी कहा जाता है।[4] कुरुक्षेत्र में भी भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा महाभारत काल के बाण और भाले प्राप्त हुए हैं।[5]गुजरात के पश्चिमी तट पर समुद्र में डूबे ७०००-३५०० वर्ष पुराने शहर खोजे गये हैं[6], जिनको महाभारत में वर्णित द्वारका के सन्दर्भों से जोड़ा गया[7], इसके अलावा बरनावा में भी लाक्षागृह के अवशेष मिले हैं[8], ये सभी प्रमाणमहाभारत की वास्तविकता को सिद्ध करते हैं।

पृष्ठभूमि

चित्र:DraupadiDhusasa.jpg
कुरुराज्य सभा में द्रौपदी का अपमान
महाभारत युद्ध होने का मुख्य कारण कौरवों की उच्च महत्वाकांक्षाएँ और धृतराष्ट्र का पुत्र मोह था। कौरव और पाण्डव आपस में सहोदर भाई थे। वेदव्यास जी से नियोग के द्वारा विचित्रवीर्य की भार्या अम्बिका के गर्भ से धृतराष्ट्र औरअम्बालिका के गर्भ से पाण्डु उत्पन्न हुए। धृतराष्ट्र ने गान्धारी के गर्भ से सौ पुत्रों को जन्म दिया, उनमें दुर्योधन सबसे बड़ा था। पाण्डु के युधिष्ठिरभीमअर्जुननकुलसहदेव आदि पाँच पुत्र हुए| धृतराष्ट्र जन्म से ही नेत्रहीन थे अतः उनकी जगह पर पाण्डु को राज दिया गया जिससे धृतराष्ट्र को सदा पाण्डु और उसके पुत्रों से द्वेष रहने लगा। यह द्वेष दुर्योधन के रुप मे फलीभूत हुआ और शकुनि ने इस आग में घी का काम किया। शकुनि के कहने पर दुर्योधन ने बचपन से लेकर लाक्षागृह तक कई षडयंत्र किये। परन्तु हर बार वो विफल रहा। युवावस्था में आने पर जब युधिष्ठिर को युवराज बना दिया गया तो उसने उन्हें लाक्षागृह भिजवाकर मारने की कोशिश की परन्तु पाण्डव बच निकले।पाण्डवों की अनुपस्थिति में धृतराष्ट्र ने दुर्योधन को युवराज बना दिया परन्तु जब पाण्डवों ने वापिस आकर अपना राज्य वापिस मांगा तो उन्हें राज्य के नाम पर खण्डहर रुपी खाण्डव वन दिया गया। धृतराष्ट्र के अनुरोध पर गृहयुद्ध के संकट से बचने के लिए युधिष्ठिर ने यह प्रस्ताव भी स्वीकार कर लिया। पाण्डवों ने श्रीकृष्ण की सहायता से इन्द्र की अमारावती पुरी जितनी भव्य नगरी इन्द्रप्रस्थ का निर्माण किया। पाण्डवों ने विश्वविजय करके प्रचुर मात्रा में रत्न एवं धन एकत्रित किया और राजसूय यज्ञ किया। दुर्योधन पाण्डवों की उन्नति देख नहीं पाया और शकुनि के सहयोग से द्यूत में छ्ल से युधिष्ठिर से उसका सारा राज्य जीत लिया और कुरु राज्य सभा में द्रौपदी को निर्वस्त्र करने का प्रयास कर उसे अपमानित किया। सम्भवतः इसी दिन महाभारत के युद्ध के बीज पड़ गये थे। अन्ततः पुनः द्यूत में हारकर पाण्डवों को १२ वर्षो को ज्ञातवास और १ वर्ष का अज्ञातवास स्वीकार करना पड़ा। परन्तु जब यह शर्त पूरी करने पर भी कौरवों ने पाण्डवों को उनका राज्य देने से मना कर दिया। तो पाण्डवों को युद्ध करने के लिये बाधित होना पड़ा, परन्तु श्रीकृष्ण ने युद्ध रोकने का हर सम्भव प्रयास करने का सुझाव दिया।

महाभारत युद्ध में श्रीकृष्ण और अर्जुन
तब श्रीकृष्ण पाण्डवों की तरफ से कुरुराज्य सभा में शांतिदूत बनकर गये और वहाँ श्रीकृष्ण ने दुर्योधन से पाण्डवों को केवल पाँच गाँव देकर युद्ध टालने का प्रस्ताव रखा। परन्तु जब दुर्योधन ने पाण्डवों को सुई की नोंक जितनी भी भूमि देने से मना कर दिया तो अन्ततः युधिष्ठिर को युद्ध करने के लिये बाधित होना पड़ा। इस प्रकार कौरवों ने ११ अक्षौहिणी तथा पाण्डवों ने ७ अक्षौहिणी सेना एकत्रित कर ली। युद्ध की तैयारियाँ पूर्ण करने के बाद कौरव और पाण्डव दोनों दल कुरुक्षेत्र पहुँचे, जहाँ यह भयंकर युद्ध लड़ा गया [9] कुरुक्षेत्र के उस भयानक और घमासान संहारक युद्ध का अनुमान महाभारत के भीष्म पर्व में दिये एक श्लोक [10] से लगाया जा सकता है कि
न पुत्रः पितरं जज्ञे पिता वा पुत्रमौरसम्।
भ्राता भ्रातरं तत्र स्वस्रीयं न च मातुलः॥
अर्थात् : उस युद्ध में न पुत्र पिता को,न पिता पुत्र को,न भाई भाई को,न मामा भांजे को,न मित्र मित्र को पहचानता था'

ऐतिहासिकता


महाभारतकालीन भारत का मानचित्र
  • महाभारत युद्ध को आमतौर पर वैदिक युग में लगभग ३१०० ईसा पूर्व के समय का माना जाता है। अधिकतर पश्चिमी विद्वान् इसे १००० ईसा पूर्व से १५०० ईसा पूर्व मानते है विद्वानों ने इसकी तिथि निर्धारित करने के लिये इसमें वर्णित सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहणों के बारे में अध्ययन किया है और इसे ३१ वीं सदी ईसा पूर्व का मानते हैं,लेकिन मतभेद अभी भी जारी है। इसकी कई भारतीय और पश्चिमी विद्वानों द्वारा भिन्न-भिन्न तिथियाँ निर्धारित की गयी हैं-
  • विश्व विख्यात भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलज्ञ वराहमिहिर के अनुसार महाभारत युद्ध २४४९ ईसा पूर्व हुआ था। [11]
  • विश्व विख्यात भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलज्ञ आर्यभट के अनुसार महाभारत युद्ध १८ फ़रवरी ३१०२ ईसा पूर्व में हुआ था। [12]
  • चालुक्य राजवंश के सबसे महान् सम्राट् पुलकेसि २ के ५वी शताब्दी के ऐहोल अभिलेख में यह बताया गया है कि भारत युद्ध को हुए ३,७३५ वर्ष बीत गए हैं, इस दृष्टि से महाभारत का युद्ध ३१०० ईसा पूर्व लड़ा गया होगा। [13]
  • पुराणों की मानें तो यह युद्ध १९०० ईसा पूर्व हुआ था, पुराणों में दी गई विभिन्न राज वंशावलियों को यदि चन्द्रगुप्त मौर्य से मिला कर देखा जाये तो १९०० ईसा पूर्व की तिथि निकलती है, परन्तु कुछ विद्वानों के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य १५०० ईसा पूर्व में हुआ था, यदि यह माना जाये तो ३१०० ईसा पूर्व की तिथि निकलती है क्योंकि यूनान के राजदूत मेगस्थनीज ने अपनी पुस्तक "इंडिका" में जिस चन्द्रगुप्त का उल्लेख किया है वो गुप्त वंश का राजा चन्द्रगुप्त भी हो सकता है। [14]
  • अधिकतर पश्चिमी यूरोपीय विद्वानों जैसे मायकल विटजल के अनुसार भारत युद्ध १२०० ईसा पूर्व में हुआ था, जो इसे भारत में लौह युग (१२००-८०० ईसा पूर्व) से जोड़कर देखते हैं। [15]
  • कुछ पश्चिमी यूरोपीय विद्वानों जैसे पी वी होले महाभारत में वर्णित ग्रह-नक्षत्रों की आकाशीय स्थितियों का अध्ययन करने के बाद इसे १३ नवंबर ३१४३ ईसा पूर्व में आरम्भ हुआ मानते हैं। [16]
  • अधिकतर भारतीय विद्वान् जैसे बी ऐन अचर, एन एस राजाराम, के. सदानन्द, सुभाष काक ग्रह-नक्षत्रों की आकाशीय गणनाओं के आधार पर इसे ३०६७ ईसा पूर्व में आरम्भ हुआ मानते हैं। [17]
  • भारतीय विद्वान् पी वी वारटक महाभारत में वर्णित ग्रह-नक्षत्रों की आकाशीय गणनाओं के आधार पर इसे १६ अक्तूबर ५५६१ ईसा पूर्व में आरम्भ हुआ मानते हैं। [16][18]
  • कुछ विद्वानों जैसे पी वी वारटक [16][18] के अनुसार यूनान के राजदूत मेगस्थनीजअपनी पुस्तक "इंडिका" में अपनी भारत यात्रा के समय जमुना(यमुना) के तट पर बसे मेथोरा(मथुरा) राज्य में शूरसेनियों से मिलने का वर्णन करते है, मेगस्थनीज यह बताते है कि ये शूरसेनी किसी हेराकल्स नामक देवता की पुजा करते थे और ये हेराकल्स काफी चमत्कारी पुरुष होता था तथा चन्द्रगुप्त से १३८ पीढ़ियों पहले था। हेराकल्स ने कई विवाह किए और कई पुत्र उत्पन्न किए। परन्तु उसके सभी पुत्र आपस में युद्ध करके मारे गये। यहाँ यह साफ है कि ये हेराकल्स श्रीकृष्ण ही थे, विद्वान् इसे हरिकृष्ण कह कर श्रीकृष्ण से जोडते है क्योंकि श्रीकृष्णचन्द्रगुप्त से १३८ पीढ़ियों पहले थे तो अगर एक पीढ़ी को २०-३० वर्ष दें तो ३१००-५६०० ईसा पूर्व श्रीकृष्ण का जन्म समय निकलता है अत इस हिसाब से ५६००-३१०० ईसा पूर्व के समय महाभारत का युद्ध हुआ होगा।
  • मोहनजोदड़ो में १९२७ में मैके द्वारा किये गये पुरातात्विक उत्खनन में मिली एक पत्थर की टेबलेट में एक छोटे बालक को दो पेड़ों को खींचता दिखाया गया है और उन पेड़ों से दो पुरुषों को निकलकर उस बालक को प्रणाम करते हुए भी दिखाया गया है, यह दृश्य भगवान श्रीकृष्ण की बचपन की यमलार्जुन-लीला से समानता दिखाता है, अत कई विद्वान् यह मानते है कि मोहनजोदड़ो सभ्यता के लोग महाभारत की कथाओं से परिचित थे। इस कारण भी इस युद्ध को ३००० ईसा पूर्व माना गया है। [19]

श्रीकृष्ण द्वारा शांति का अंतिम प्रयास[20]

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