मैं चन्दन ही हूँ
हाँ ! मैं चन्दन ही था , मुझे काटा गया ,
घिसा पत्थर पर, माथे पे लगाया गया ।
चाहता रहा खुशबु बाँटना , जमाने में ,
मुझे तराश कर ,बुत खाने में सजाया गया ।
कुदरत की मेहरबानी , मुझे शीतलता मिली ,
सुरक्षा में विषधरों को ,मुझसे लिपटाया गया ।
मगर नहीं चाहा किसी ने वुजूद मेरा बचाना ,
वृक्षों को मेरे काटा गया , उजाड़ा गया ।
चाहत रही , रहूँ अर्पित सदा प्रभु के चरणों में ,
क्यूँ किसी नेता के शव में , मुझको जलाया गया ?
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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