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Monday, August 12, 2013

    मैं चन्दन ही हूँ

हाँ ! मैं चन्दन ही था , मुझे काटा गया ,
घिसा पत्थर पर, माथे पे लगाया गया ।

चाहता रहा खुशबु बाँटना , जमाने में ,
मुझे तराश कर ,बुत खाने में  सजाया गया ।

कुदरत की मेहरबानी , मुझे शीतलता मिली ,
सुरक्षा में विषधरों को ,मुझसे लिपटाया गया ।

मगर नहीं चाहा किसी ने वुजूद मेरा बचाना ,
वृक्षों को मेरे  काटा गया ,  उजाड़ा गया ।

चाहत रही , रहूँ अर्पित सदा प्रभु के चरणों में ,
क्यूँ किसी नेता के शव में , मुझको जलाया गया ?

डॉ अ कीर्तिवर्धन

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